उत्तानपाद और सुमति का पुत्र ध्रुव अत्यंत
मातृभक्त था। वह सर्वथा माता के अनुकूल आचरण करता था। जैसा माता कह दे, ध्रुव
उससे रंचमात्र भी नहीं हटता था। जब माता सुमति वृद्ध हुई तो उन्होंने संन्यास
ग्रहण कर लिया और वन जाने की इच्छा व्यक्त की। ध्रुव उस समय राजा थे। उन्होंने
माता की इच्छा का आदर करते हुए माता के वन गमन का प्रबंध किया। ध्रुव का व्यक्तित्व
राजा और ॠषि दोनों के गुणों से समन्वित था। सात्विक जीवन जीने वाले ध्रुव के अंत
समय में जब स्वर्ग का विमान उन्हें लेने के लिए आया तो मृत्यु उनके समक्ष दंडवत
होकर बोली-भगवान्, आप मेरे मस्तक पर अपने पैरों का स्पर्श करते हुए विमान की
सीढियां चढें। मैं धन्य हो जाऊंगी। ध्रुव ने ऐसा ही किया। तत्काल बाद उन्होंने
देवदूतों को विमान मृत्युलोक की ओर पुन: मोङने के लिए कहा। कारण पूछने पर वे
बोले-वहां मेरी माताश्री हैं, जो मेरे समस्त ज्ञान की स्रोतस्विनी हैं। उनके बिना मेरा स्वर्गारोहण
अधूरा ही रहेगा। तभी देवदूतों ने उन्हें संकेत से एक अति भव्य विमान दिखाया और
कहा कि हमने आपकी माताश्री को आपसे पहले ही स्वर्ग भेजने की व्यवस्था कर दी है।
मातृभक्त ध्रुव को अत्यंत संतोष हुआ कि स्वर्ग में भी मैं उसी मातृछाया में
रहूंगा, जो सदैव मेरे सन्मार्ग का संबल रही है।
वस्तुत: इस धरती पर मां ईश्वर का
प्रतिस्वरूप है। यदि ऐसा मानकर उसके प्रति अटल निष्ठा रखी जाए तो दिव्य शांति व
परम सुख का जीवन में स्थायी निवास हो जाता हैं।
मातृभक्त ध्रुव ने स्वर्गगमन भी माता के साथ ही किया
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सितंबर 24, 2019
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