अकबर बीरबल हिन्दी कहानी : साहूकार और ठग
साहूकार और ठग अकबर बीरबल हिन्दी कहानी
एक बार की बात है, अकबर और बीरबल राज्य में हाल ही में हुई एक घटना के बारे में बातचीत कर रहे थे। एक ठग अदालत में आया था और उसने शिकायत की थी साहूकार ने उसके गहने उसे पूछे बिना उसके दोस्त को दे दिया। जबकि साहूकार को गहने देते समय हमने यह बात कही थी हम दोनों साथ आये तभी गहने देना नहीं मत देना। अब अकबर ने बीरबल को फैसला करने को कहां। आगे बीरबल इस अकबर बीरबल हिन्दी कहानी क्या फैसला करते है। पढ़िये इस कहानी में
अकबर बीरबल हिन्दी कहानी : Hindi Story
दिल्ली शहर में एक ईमानदार साहूकार रहता था। एक बार दो ठग व्यापारियों के भेष में आए, जिन्होंने स्वंय को चीन का निवासी बताया और साहूकार से प्रार्थना की। उन लोगों के पास कुछ जेवरात हैं जिन्हें वह बिकवा दे तो बड़ी कृपा होगी। साहूकार ईमानदार था। छल-कपट की बातें उसे मालूम न थीं। उसने स्वाभाविक सरलता से कहा-‘‘जब तक मैं किसी को दिखाऊंगा नहीं, तब तक कैसा इनका बिकना संभव होगा? अतएवं आप लोग इन जेवरातों को आज हमारे पास रहने दीजिए, कल दोपहर तक इनका इंतजाम हो जाएगा।’’
व्यापारियों के रूप में जो ठग थे, उन्होंने कहा-‘‘आप बे-रोकटोक जेवरों को अपने पास रखिए, पर ध्यान रहे कि जब हम दोनों ही आपके पास जेवरात लेने आएं तो दीजिएगा, केवल किसी एक के आने पर नहीं।’’
साहूकार ने कहा-‘‘ऐसा ही होगा।’’
सब जेवरात साहूकार के हवाले करके ठगों ने अपना मार्ग लिया। कुछ दूरी का फासला तय करने के बाद उनमें से एक ने वापस आकर साहूकार से कहा-‘‘आप कृपा करके जेवरात वापस दे दें। हम लोग कल दोपहर तक आपकी सेवा में फिर हाजिर हो जाएंगे।’’
साहूकार ने पूछा-‘‘आपके दूसरे साथी कहां हैं?’’
आने वाले ठग ने उंगली से दूसरे ठग की ओर इशारा करके साहूकार को बताया कि उसके आदेश से ही वह आया है। साहूकार को यकीन हो गया और जेवरात वापस कर दिए।
कुछ समय बाद जब दूसरा साथी आया और जेवरों को वापस मांगा तो साहूकार ने कहा-‘‘आपका दूसरा साथी आया और जेवरात लेकर चला गया।
मैंने उससे कहा भी कि आपके दूसरे साथी कहां हैं तो वह बोला कि देखो वह हीं तो हैं, उन्हीें के कहने से तो आया हूं। ये बातें जब उसने कही तो मैंने जेवरात वापस कर दिए।’’
दूसरे ठग ने साहूकार की एक न सुनी। उसने जेवरात वापस लिए बिना वहां से हटने से इंकार कर दिया और बोला-‘‘जब मैंने आपको पहले ही सावधान कर दिया था तो ऐसी बातें क्यों पैदा हुई? जब तक मैं न आता आपका उसे जेवर देना उचित न था, इसका दंड मैं क्यों भोगूं? आपने जैसा किया वैसा भोगिए।’’
साहूकार ने नम्रतापूर्वक जवाब दिया-‘‘आप भी उस वक्त चौराहे पर खड़े थे, जब आपका दूसरा साथी जेवरात लेने आया था।’’
ठग का मिजाज गर्म हो गया, वह तैश में आकर बोला-‘‘इससे क्या होता है? क्या मैं कहीं पर खड़ा भी नहीं हो सकता? मैंने तो उसे भेजा ही नहीं था।’’
मामला बढ़ता ही गया। अंत में ठग ने अकबर बादशाह के यहां आकर सारा हाल कह सुनाया। अकबर बादशाह ने उनके फैसले का भार बीरबल को सौंपा। बीरबल ने साहूकार को बुलवाया। साहूकार ने अपनी सफाई दी और बड़े-बड़े विश्वसनीय महाजनों की गवाही भी दिलवाई। बीरबल को निश्चय हो गया कि दावा झूठा है। परन्तु यह होते हुए भी बिना सबूत दंडित करना ठीक नहीं, यह ख्याल करके बीरबल ठग से बोले-‘‘जब तुमने यह कहा था कि तुम दोनों साथ आओ तभी जेवरात वापस किए जाएं तो तुम अकेले ही क्यों आए, तुम्हारा दुसरा साथी कहां है?’’ जब तुम अपने दूसरे साथी के साथ आओगे तभी जेवरात वापस किए जाएंगे।
जब ठग से कोई जवाब न बना तो बीरबल ने साहूकार को हुक्म दिया-
‘‘अब जब यह कभी दोनों साथ आएं, इन्हें हमारे पास लाना, यदि अकेले आएं तो भी साथ लाना।’’
साहूकार इस फैसले से बड़ा प्रसन्न हुआ। अकबर बादशाह ने भी मन ही मन बीरबल की बुद्धि प्रशंसा की।
निष्कर्ष
साहूकार और ठग की कहानी अकबर-बीरबल हिन्दी कहानी एक क्लासिक कहानी है। यह हमें सिखाता है कि बुद्धिमत्ता और त्वरित सोच हमें सबसे कठिन समस्याओं को भी हल करने में मदद कर सकती है। कहानी सतर्क रहने और किसी पर भी आंख मूंदकर भरोसा न करने के महत्व पर भी प्रकाश डालती है, भले ही वह भरोसेमंद प्रतीत हो।
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