बहुत पुरानी घटना है। नगर में भारी अकाल
पङा। प्रजा हाहाकार कर रही थी। अपने भक्तजनों को एकत्रित करे बुद्ध भगवान ने
पूछा, “बोलो प्रियजनों, भूखी जनता को अनाज देने के लिए तुममें से कौन कमर
कसता है?”
गुरूदेव की बात सुनकर रत्नाकर सेठ का
माथा नीचे को झूक गया। हाथ जोङकर वह बोले, “ऐसी बङी नगरी को अनाज पहुँचाने की शक्ति
मुझमें नहीं है प्रभु।”
इसके पश्चात् गुरूदेव की उदास नजरें
सेनापति जयसेन के मुख पर पङी। जयसेन ने उत्तर दिया, “छीन चीरकर खून देने से अगर जनता की जान बच
सकती है तो क्षण-भर में उसे देने की तैयार हूँ। महाराज, मगर मेरे घर में इतना अन्न
कहाँ से हो सकता है?”
धर्मपाल बोल पङा, “मैं तो अभागा हूँ प्रभु! अकाल ने मेरे
सारे खेत सुखा दिये। मुझे तो फिक्र है कि मैं राज्य् का टैक्स किस प्रकार चुका
पाऊँगा।”
सभी एक-दूसरे का मुख देखने लगे। अचानक भीङ
में से एक औरत सामने आयी। इसका माथा लाल-लाल था। शर्मिन्दगी से इसने अपना सिर
झुका लिया। यह है प्रभु तथागत के प्रिय शिष्य अनाथ्ज्ञपिंडद की पुत्री सुप्रिया।
दु:ख की वजह से इसकी आँखों से आँसू बह रहे है। बुद्धदेव के चरा छूकर वह मीठी वाणी
मे बोल उठी-“प्रभु! आज जब सभी लोगों ने अपनी मजबूरी बताकर आपको मायूस कर दिया है,
तब मैं मामूली और तुच्छ सेविका, आपकी इस आज्ञा को सिर पर चढाती हूँ। अन्न के
कारण जो लोग भूखें मर रहे हैं, वे सब मुझे अपनी ही संतान के समान लग रहे हैं। नगर
के प्रत्येक आंगन में अनाज पहुँचाने की जिम्मेदारी में अपने माथे पर लेती हँ।”
सुनने वाले सभी मनुष्य हैरत में देखते रह
गए। गुरूदेव के कुछ माने हुए शिष्य तो उपहास भी करने लगे। कुछ क्रोधित हो गये।
कुछ-एक को सुप्रिया पागल लगी। कठोर स्वर में प्राय: सभी उससे पूछने लगे, “ऐ भिखारी की लङकी, तू स्वयं भिखारिन है।
तुझमें इतना ज्यादा अभिमान कहाँ से आ गया है कि ऐसा बङा कार्य अपने सिर पर ले रही
है। तेरे घर में ऐसे भी क्या अनाज के भण्डार
भरें पङे हैं, भिखारी की पुत्री!”सबके सामने सिर झुकाकर सुप्रिया ने कहा, “मेरे पास कुछ नहीं, सिर्फ भिख मागने का यह
कटोरा है। मैं तो एक तुच्छ औरत हूँ, सबसे गरीब हूँ। मगर हे प्रियजनों, तुम्हारी
कृपा के बल पर ही गुरूदेव की आज्ञा पूरी होगी, मेरी ताकत से नहीं। मेरा भण्डार तो
आप सबके घर में भरा पङा है। आप सबकी मर्जी अगर होगी तो यह मेरा मामूली भिक्षापात्र
भी हमेशा भरा रहेगा। मैं आपके द्वार-द्वार भटकूंगी और आप जो कुछ भी देगें, उसे
भूखों को खिलाऊँगी जब तक धरती माता हैं, तब तक किस बात की फिक्र?”
भीख का कटोरा
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अक्तूबर 06, 2019
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