साठ दिन का महिना अकबर-बीरबल हिंदी कहानी |
एक दिन दरबार लगा हुआ था। बीरबल सहित सभी दरबारी दरबार में उपस्थित थे। सहसा अकबर ने दरबारियों के सामने एक प्रस्ताव रख दिया, ‘‘हम सोच रहे हैं कि महिना 30 दिन की जगह 60 दिन का होना चाहिये। आप लोगों का इस बारे में क्या ख्याल है?’’
यह सुनना था कि चापलूस दरबारी हाँ में हाँ मिलाने लगे ये उनके लिए चापलूसी का बेहतरीन अवसर था। कुछ दरबारियों ने कहा, ‘‘जहाँपनाह! आपका विचार अति-उत्तम है। 30 दिन का महिना बहुत छोटा होता है। कामकाज पूरे नहीं हो पाते, इसलिए महिना 60 दिन का ही होना चाहिए’’
कुछ कहने लगे, ‘‘जहाँपनाह! 60 दिन का महिना करने का फरमान फौरन जारी हो जाना चाहिए। इससे बढ़िया विचार तो हो ही नहीं सकता।
बीरबल अब तक चुपचाप बैठा सारी बात सुन रहा था। उसने इस बारे में राय व्यक्त करने में कोई उत्सुकता नहीं दिखाई।
बीरबल को खामोश देख अकबर ने पूछा, ‘‘बीरबल! तुम क्या कहते हो तुम्हारी राय भी अन्य दरबारियों की तरह ही है?’’
‘‘हुजूर 30 दिन से 60 दिन का महिना कर देने का विचार उत्तम है, किंतु इसके लिए एक काम करना होगा।’’ बीरबल शांति से बोला,
अकबर कुछ कहते, उसके पहले ही दरबारी एक स्वर में कहने लगे, ‘‘हम बादशाह सलामत के आदेश का पालन करने के लिए कोई भी काम करने को तैयार हैं’’
‘‘अच्छी बात है...’’ बीरबल बोला, ‘‘आप लोग तो जानते ही होंगे कि पृथ्वी पर 15 दिन चाँदनी रातें और 15 दिन अंधेरी रातें चंद्रमा के कारण होती है, प्रकृति के इस नियम के कारण पृथ्वी पर महीना 30 दिन का होता है। अब जब आप लोग 60 दिन का महिना करने के लिए कुछ भी करने को तैयार है, तो ऐसा कीजिये कि चंद्रमा को कहकर 30 दिन चाँदनी रातें और 30 दिन अंधेरी रातें करवा दीजिये’’
येे सुनना था कि चापलूस दरबारी बगले झांकने लगे।
बीरबल अकबर से बोला, ‘‘जहाँपनाह! देखिये सारे कर्मठ दरबारियों को सांप सूंघ गया है, अब ऐसे में क्या किया जाये?’’
अकबर ने दरबारियों की परीक्षा लेने के लिए ये प्रस्ताव सामने रखा था, दरबारियों की चापलूसी देख वे नाराज हो गये और उन्हें लताड़ते हुए बोले, ‘‘चापलूस कर बीरबल की बराबरी करने चले हो, जानते नहीं बीरबल की बराबरी के लिए अक्ल चाहिये, चापलूसी का गुर नहीं’’
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