सुनने का महत्व: अकबर और बीरबल के बीच बातचीत से सबक | akbar birbal hindi kahani |
सुनने का महत्व: अकबर और बीरबल के बीच बातचीत से सबक | akbar birbal hindi kahani
सुनना एक आवश्यक कौशल है जो सभी के पास होना चाहिए। सुनने से संचार में सुधार, संबंध बनाने और ज्ञान प्राप्त करने में मदद मिलती है। भारत में, अकबर और बीरबल के बीच बातचीत उनकी बुद्धि और ज्ञान के लिए प्रसिद्ध है। ये बातचीत समझने और समस्याओं को हल करने के लिए दूसरों को सुनने के महत्व पर प्रकाश डालती हैं। इस लेख में हम अकबर और बीरबल के बीच हुई बातचीत से सीख सकते हैं।
Akbar birbal Hindi kahani | Hindi Story
एक कवि किसी धनवान कंजूस आदमी की प्रशंसा में कविता बनाकर उसके पास ले गया और अपनी कविता पढ़कर सुनाई। कंजूस समझ गया कि यह कुछ लेने की इच्छा से मेरे पास आया है। इसलिए सोचा कि जैसे इसने कविता सुनाकर मुझको प्रसन्न किया है, वैसे ही मैं भी इसको बातों से खुश करके विदा करूंगा। यह विचार कर वह बोला-‘‘कविजी! वाह, कैसी उत्तम कविता बनाई है। आप मेरे पास कल आइए, मैं आपको यथावत खुश करूंगा।’’ को सुनकर कवि मन ही मन में फूला न समाया। दूसरे दिन खुशी के जोश में कवि फिर कंजूस के पास जा पहुंचा। उसे देखते ही कंजूस बोला-‘‘तुम कौन हो।
कवि ने घबराकर कहा-‘‘मैं वही हूं जो कल आपके लिए कविता बनाकर लाया था। क्या आप मुझे भूल गए?’’
कंजूस बोला-‘‘कल की बात कल गई, आज क्या है? कल जैसे तुमने कविता सुनाकर मुझको आनंदित किया था, वैसे ही मैंने प्रशंसा भरी बात कहकर तुमको प्रसन्न किया था। न तुमने मुझे कुछ दिया और न मैंने ही तुमको कुछ दिया।’’
यह सुनकर कवि वहां से चला आया और एक मित्र के साथ बीरबल के पास पहुंचा। सारा हाल सुनकर बीरबल ने कहा-‘‘कविराज! चार-पांच दिन बाद अपने इस मित्र को उस कंजूस के पास भेजना। यह किसी कामकाज के बहाने उससे खूब मित्रता कर ले और फिर किसी दिन उसको खाने का न्योता दें। जिस दिन वह तुम्हारे घर भोजन के लिए आए, उस दिन मुझे भी बुलवा लेना। इतना स्मरण रखना कि उसे केवल न्योता ही देना है, खाना नहीं खिलाना है।’’ दोनों मित्र उसकी बात समझ गए।
थोड़े समय में ही कवि के मित्र ने कंजूस के साथ जान-पहचान बढ़ाकर कामकाज का व्यवहार डाल दिया और जब दोस्ती खूब बढ़ गई, तब एक दिन उसको भोजन का न्योता दिया। कंजूस ने न्योता मान लिया। उस दिन उसने बीरबल से और कवि से भी आने का कहलवा भेजा। वे दोनों भेष बदलकर आ पहुंचे।
थोड़ी देर में कंजूस भी आ गया। उन तीनों ने उसका खूब सत्कार किया। लेकिन उन दोनों को पहचाना नहीं और सभी बातचीत में व्यस्त हो गए। खाने की कुछ भी तैयारी न थी। वे लोग तो अपने-अपने घर से खाना खाकर आए थे। लेकिन कंजूस भूखा था। बहुत देर तक अपने मन को मारकर वह चुप बैठा रहा। अंत में परेशान होकर कंजूस ने कहा-‘‘भाई! खाने-पीने का भी कुछ प्रबन्ध है या यों ही बिठाए रखोगे?’’
तब कवि के मित्र बोले-‘‘भाई! मैंने तुमको खाना खाने के लिए थोड़े ही बुलाया है। मैंने तो तुमको केवल खाने का निमंत्रण देकर खुश किया है।’’
कंजूस यह सुनकर बहुत शर्मिन्दा हुआ और उसे अपनी गलती को अहसास हो गया फिर उसने कवि को यथोचित पुरस्कार दे दिया।
निष्कर्ष
अकबर और बीरबल के बीच की बातचीत हमें दूसरों को सुनने का महत्व सिखाती है। सुनने से हमें ज्ञान प्राप्त करने, विभिन्न दृष्टिकोणों को समझने और समस्याओं को हल करने में मदद मिलती है। हमें ध्यान से सुनना चाहिए और न केवल जो कहा गया है उसे समझना चाहिए बल्कि यह भी समझना चाहिए कि क्या रह गया है। ऐसा करके हम बेहतर संचारक बन सकते हैं और मजबूत संबंध बना सकते हैं।
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