अकबर और बीरबल: दोस्ती का अंत - एक हिंदी कहानी

अकबर और बीरबल: दोस्ती का अंत - एक हिंदी कहानी

 
दोस्ती का अंत  अकबर बीरबल हिन्दी कहानी

दोस्त हमारे जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा हैं। वे हमें भावनात्मक समर्थन प्रदान करते हैं, हमारे सुख-दुख साझा करते हैं और सुख-दुख में हमारे साथ खड़े रहते हैं। हालाँकि, कभी-कभी दोस्ती ख़त्म हो सकती है, और इसमें शामिल दोनों पक्षों के लिए यह एक चुनौतीपूर्ण समय हो सकता है।

अकबर बीरबल हिन्दी कहानी | Hindi Story

अकबर बादशाह के एक शहजादे की शहर के एक प्रतिष्ठित साहूकार के लड़के से घनी मित्रता थी। शाहजादा सबको छोड़कर साहूकार के पुत्र के साथ इधर-उधर रासक्रीड़ाओं में दिन व्यतीत करता था। अकबर बादशाह तथा साहूकार को यह मित्रता पसंद नहीं थी और इसलिए दोनों ही चाहते थे कि इनकी मित्रता टूट जाए। अकबर बादशाह ने कई बार शहजादे से कहा किन्तु कोई नतीजा न निकला। साहूकार भी यही चाहता था, क्योंकि उसका लड़का भी सारा कारोबार छोड़कर रात-दिन शहजादे के साथ घूमता रहता था, किन्तु भयवंश वह कुछ नहीं कह सकता था, क्यांेकि यदि शहजादे को मालूम हो जाता तो अकारण ही जान जोखिम में पड़ती और अकबर बादशाह भी शहजादे की बात टाल नहीं सकते थे। 

दोनों की मित्रता कैसे भंग हो, इस विषय पर एक दिन बादशाह विचार कर रहे थे कि तभी बीरबल भी वहां पहुंच गए। उन्हें आया देखकर अकबर बादशाह बहुत खुश हुए और पास बैठाकर उनसे बोले-‘‘साहूकार के पुत्र तथा शहजादे की दोस्ती किसी न किसी उपाय से छुड़ानी चाहिए। मेरे विचार से तो तुम ही इस काम को कर सकते हो।’’

अकबर बादशाह का हुक्म पाकर बीरबल बोले-‘‘आलीजहां! एक हुक्म जारी कीजिए कि आज शहजादे तथा सेठपुत्र दोनों साथ ही दरबार में उपस्थित हों।’’

अकबर बादशाह ने ऐसा ही हुक्म दिया और दोनों मित्र नियत समय पर दरबार में उपस्थित हुए। कुछ देर तक तो इधर-उधर मन बहलाव की बातें होती रहीं। जब बीरबल ने देखा कि अब शहजादे का मन यहां नहीं लग रहा है तो उन्होंने उसके साहूकार मित्र के पास जाकर उसके कान में फुसफुसा कर कुछ कहा। बात साफ न थी, अतः साहूकार का लड़का कुछ समझ न सका। इसके पश्चात् बीरबल ने शहजादे के मित्र को संबोधित करके चेतावनी दी-‘‘ध्यान रहे, यह बात बिल्कुल गुप्त रखी जाए। अपने इष्ट मित्र से भी तुम इसकी चर्चा मत करना।’’

बीरबल की इस चेतावनी को सभी दरबार में उपस्थित लोगों ने अच्छी तरह सुना। इसके बाद दरबार दूसरे दिन के लिए उठा दिया गया। 

दरबार के बाद शहजादे के मित्र ने पूछा-‘‘बीरबल ने तुम्हारे कान में क्या कहा था?’’

साहूकार मित्र शहजादे को कुछ न बता सका। आखिर कोई बात बीरबल कहते या वह समझता तो बताता भी। 

अब शहजादे को कुछ-कुछ शंका उत्पन्न हुई और वह बोला-‘‘मित्र! आज आपने यह नया तरीका खूब अपनाया है।’’

साहूकार मित्र बोला-‘‘नहीं दोस्त बिल्कुल नहीं! बीरबल ने तो मुझसे कुछ कहां ही नहीं, केवल कान के पास मुंह ले जाकर कुछ, अस्पष्ट-सा फुसफुसाकर हटा लिया और खुले आम यह कहा कि जो बात मैंने ‘तुमको कही है, इस बात को गुप्त रखना।’’

अब तो शहजादे को पूर्ण विश्वास हो गया कि मित्र सबकुछ जानते हुए भी बता नहीं रहा है। शहजादे के दिल में शंय पैदा हो गया और धीरे-धीरे दोनों मित्रों के दिलों में एक-दुसरे के प्रति अविश्वास का गहरा परदा खिंच गया। दोनांे की घनिष्ठा मित्रता आखिर भंग हो गई। फिर हमेशा के लिए दोनों मित्रों का मन एक-दूसरे से हट गया और वे दोनों अपने-अपने कामकाज देखने लगे। साहूकार को भी यह मित्रता भंग हो जाने से बड़ी खुशी हुई। अकबर बादशाह बीरबल की चतुराई से अत्यधिक प्रसन्न हुए और सदा की तरह बीरबल के उस कार्य से खुश होकर उन्होंने उसे पुरस्कार दिया।

निष्कर्ष

अंत में, अकबर और बीरबल की दोस्ती की कहानी एक शक्तिशाली अनुस्मारक है कि रिश्ते कितने नाजुक हो सकते हैं और उन पर काम करना कितना महत्वपूर्ण है। यह हमें दिखाता है कि सबसे करीबी दोस्तों में भी असहमति हो सकती है और स्वस्थ संबंध बनाए रखने के लिए क्षमा और संचार महत्वपूर्ण हैं।

अकबर और बीरबल: दोस्ती का अंत - एक हिंदी कहानी अकबर और बीरबल: दोस्ती का अंत - एक हिंदी कहानी Reviewed by Kahaniduniya.com on जून 22, 2023 Rating: 5

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