आधा इनाम अकबर बीरबल हिन्दी कहानी |
आधा इनाम अकबर बीरबल हिन्दी कहानी
आधा इनाम अकबर बीरबल की कहानी हमें सिखाती है कि कड़ी मेहनत और ईमानदारी ही सफलता की कुंजी है। अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए हमेशा शॉर्टकट नहीं देखना चाहिए। इसके बजाय उन्हें कड़ी मेहनत करनी चाहिए और ईमानदारी से सफलता हासिल करनी चाहिए।
यह स समय की बात है जब बादशाह अकबर की बीरबल से पहली बार मुलाकात हुई थी। तब के समय बीरबल का नाम महेश दास था। एक दिन बादशाह अकबर अपने राज्रू मे दौरेे पर निकले तो उन्होने अपने राज्य में एक व्यक्ति की चतुराई को देख कर अत्यधिक प्रसन्न हु। उन्होंने अने दरबार में उस व्यक्ति को आने के लिए कहा, साथ ही बादशाह ने अपनी एक अंगुठी दी। वह व्यक्ति कोई और नहीं महेश दास था। एक दिन महेश दास ने बादशाह अकबर से मिलने का विचार बनाया। बादशाह ने मुझे इनाम देने के लिए बुलाया भी था।
महेश दास जब महल के द्वार पर पहुँचा तो उसने देखा कि वहां पर कई सारे लोग लाइन लगाकर बादशाह से मिलने का इंतजार कर रहे है। साथ ही यह भी देखा कि द्वारपाल सभी से कुुछ न कुछ लेने के बाद ही अंदर प्रवेश दे रहे है।
जब महेश दास महल के द्वार पर पहुंचा तो द्वारपाल ने उसे रोक दिया तो महेश दास ने बोला कि बादशाह ने उसे इनाम के लिए बुलाया है। तो द्वारपाल ने महेश दास से कुछ निशानी देने को कहा। क्योंकि राज-दरबार के अंदर जाने के लिए लोगों को कुछ सबूत दिखाना पड़ता था।
तो महेश दास ने बादशाह से मिली अंगुठी द्वारपाल को दिखाई, जिसके बाद अगुंठी को देखकर द्वारपाल के मन में लालच आ गया और वह सोंचने लगा कि ‘‘जिस व्यक्ति के पास बादशाह अकबर की अंगुठी हो उसे कितना बड़ा इनाम मिलेगा।’’
द्वारपाल ने महेश दास को राज-दरबार में जाने से पहले एक शर्त रख दी। कि उसे मिलने वाले इनाम में आधा हिस्सा उसे देगा तो ही महल के अंदर प्रवेश देने देगा।
महेश दास ने कुछ देर सोंचने के बाद द्वारपाल की शर्त को मान कर राज-दरबार की और चले गये।
जैसे ही महेश दास बादशाह अकबर के सामने आये, बादशाह ने महेश दास को तुरंत पहचान लिया और पुरे दरबार में महेश दास की चतुराई की प्रसंशा की। बादशाह ने महेश दास को कहा कि ‘‘मांगो, क्या इनाम चाहिए।’’
महेश दास ने बादशाह से प्रश्न किया कि ‘‘मैं जो भी मांगू, आप मुझे वो इनाम में दोगे?’’ बादशाह अकबर ने जवाब दिया कि तुझे जो भी इनाम में चाहिए वो तुम बिना डरे मांग सकते हो, तुम्हें वो जरूर दिया जायेगा।
फिर महेश दास ने बड़ी अजीब मांग रखी कि ‘‘मुझे इनाम में मेरी पीठ पर 100 कोड़े मारे जाये।’’
महेश दास की इस अजीब मांग को सुनकर बादशाह अकबर और राज-दरबार के सभी लोग आश्चर्य से महेश दास की और देखने लग जाते हैं। बादशाह अकबर ने महेश दास से पूछा कि ‘‘तुम ऐसा इनाम क्यों मांग रहे हो? जिससे तुम्हे ही कष्ट हो।’’
तब महेश दास ने द्वारपाल से हुई सारी बातचीत बादशाह को विस्तारपूर्वक बताई और इनाम का आधा हिस्सा द्वारपाल को देने के लिए कहा।
इस बात से बादशाह को अपने द्वारपाल पर बहुत गुस्सा आया और द्वारपाल को लालच की सजा के तौर पर 100 कोड़े मारने की सजा सुनाई।
बादशाह अकबर महेश दास की चतुराई को देखकर महेश दास को अपने राज दरबार के लिए मुख्य सलाहकार के रूप में नियुक्त करके बादशाह ने महेश दास के नाम को परिवर्तन कर के बीरबल रख दिया। तब से महेश दास बीरबल के नाम से प्रसिद्ध हो गये।
इस प्रकार बीरबल ने अपने चतुराई के दम पर बादशाह अकबर के राज-दरबार में हमेशा के लिए राज्य के सलाहकार के रूप में रहने लगा।
निष्कर्ष
"आधा इनाम अकबर बीरबल" की कहानी इस बात का एक बड़ा उदाहरण है कि कड़ी मेहनत और ईमानदारी से सफलता कैसे प्राप्त की जा सकती है। यह हमें सिखाता है कि शॉर्टकट आकर्षक लग सकते हैं, लेकिन वे अक्सर हमारे लक्ष्यों को प्राप्त करने का सही तरीका नहीं होते हैं। हमें हमेशा ईमानदार तरीकों से अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए और आसान रास्ता नहीं अपनाना चाहिए। यह कहानी भारतीय लोककथाओं में एक लोकप्रिय कहानी बनी हुई है और पीढ़ियों को प्रेरित करती रही है।
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