इन्‍द्रप्रस्‍थ की स्‍थापना



द्रौपदीस्‍वयंवर के पहले विदुर को छोङ कर सभी पाण्‍डवों को मृत समझने लगे और इस कारण धृतराष्‍ट्र ने इस कारण शकुनि के कहने पर दुर्योधन को युवराज बना दिया। द्रौपदी स्‍वयंवर के तत्‍पश्‍चात् दुर्योधन आदि को पाण्‍डवों के जीवित होने का पता चला। पाण्‍डवों ने कौरवों से अपना राज्‍य मांगा परन्‍तु गृहयुद्ध के संकट से बचने के लिए युधिष्‍ठर ने कौरवों द्वारा दिए खण्‍डहर स्‍वरूप खाण्‍डववन आधे राज्‍य के रूप में प्राप्‍त किया। पांडवों की पांचाल राजा द्रुपद की पुत्री द्रौपदी से विवाह उपरांत मित्रता के बाद वे काफी शक्तिशाली हो गए थे। तब हस्तिनापुर के महाराज धृतराष्‍ट्र ने उन्‍हें राज्‍य में बुलाया। धृतराष्‍ट्र ने युधिष्ठिर को संबोधित करते हुए कहा, हे कुंती पुत्र अपने भ्राताओं के संग जो मैं कहता हुं, सुनो। तुम खांडवप्रस्‍थ के वन को हटा कर अपने लिए एक शहर का निर्माण करो, जिससे कि तुममें और मेंरे पुत्रो में कोई अन्‍तर ना रहे। यदि तुम अपने स्‍थान में रहोगे, तो तुमको कोई भी क्षति नहीं पहुंचा पाएगा। पार्थ द्वारा रक्षित तुम खांडवप्रस्‍थ में निवास करो, और आधा राज्‍य भोगो।धृतराष्‍ट्र के कथनानुसार, पांडवों ने हस्तिनापुर से प्रस्‍थान किया। आधे राज्‍य के आश्‍वासन के साथ्‍ज्ञ उन्‍होंने वांडवप्रस्‍थ के वनों को हटा दिया। उसके उपरांत पांडवों ने श्रीकृष्‍ण के साथ्‍ज्ञ मय दानव की सहायता से उस शहर का सौन्‍दर्यीकरण किया। वह शहर एक द्वितीय स्‍वर्ग के समान हो गया। उसके बाद सभि महारथियों व राज्‍यों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में वहां श्रीकृष्‍ण द्वैपायन व्‍यास के सानिध्‍य में एक महान यज्ञ और गृहप्रवेश अनुष्‍ठान का आयोजन हुआ।



उसके बाद, सागर जैसी चौङी खाई से घिरा, स्‍वर्ग गगनचुम्‍बी चहारदीवारी से घिरा व चंद्रमा या सूखे मेघों जैसा श्‍वेत वह नगर नागों की राजधानी, भोगवती नगर जैसा लगने लगा। इसमें अनगिनत प्रासाद, असंख्‍य द्वार थे, जो प्रत्‍येक द्वार गरूङ के विशाल फैले पंखों की तरह खुले थे। इस शहर की रक्षा दीवार में मंदराचल पर्वत जैसे विशाल द्वार थे। इस शस्‍त्रों से सुसज्जित, सुरक्षित नगरी को दुश्‍मनों का एक बाण भी खरौंच तक नहीं सकता था। उसकी दीवारों पर तोपे और शतघ्नियां रखीं थीं, जैसे दुमुंही सांप होते हैं। बुर्जियों पर सशस्‍त्र सेना के सैनिक लगे थे। उन दीवारों पर वृहत लौह चक्र भी लगे थे। यहां की सङके चौ्ङी और साफ थीं। उन पर दुर्घटना को कोई तय नहीं था। भव्‍य महलों, अट्टालिकाओं और प्रासादों से सुसज्जित यह नगरी इंद्र की अमरावती से मुकाबला करती थीं।

इस कारण ही इसे इंद्रप्रस्‍थ नाम दिया गया था। इस शहर के सर्वश्रेष्‍ठ भाग में पांडवों का महल स्थित था। इसें कुबेर के समान खजाना और भंडार थे। इतने वैभव से परिपथ इसको देखकर दामिनी के समान आंखें चौधिया जाती थीं। जब शहर बसा, तो वहां बङी संख्‍या में ब्राह्मण आए, जिनके पास सभी वेद-शास्‍त्र इत्‍यादि थे, व सभी भाषाओं में पारंगत थे। यहां सभी दिशाओं से बहुत से व्‍यापारीगण पधारें। उन्‍हें यहां व्‍यापार कर धन संपत्ति मिलने की आशाएं थीं। बहुत से कारीगर वर्ग के लोग भी यहां आ कर बस गए। इस शहर को घेरे हुए, कई सुंदर उद्यान थें, जिसे असंख्‍य प्रजातियों के फल और फूल इत्‍यादि लगे थे। इनमें आम्र, अमरतक, कदंब अशोक, चंपक, पुन्‍नग, नाग, लकुचा, पनास, सालस और तालस के वृक्ष थे। तमाल, वकुल और केतकी के महकते पेङ थे। सुंदर और पुष्पित अमलक, जिनकी शाखाएं फलों से लदी होंने कारण झुकी रहती थीं। लोध्र और सुंदर अंकोल वृक्ष भी थे। जम्‍बू, पाटल, कुंजक, अतिमुक्‍ता करविरस, पारिजात और ढेरों अन्‍य प्रकार के पेङ पौधे लगे थे। अनेकों हरे भरे कुंज यहां मयूर और कोकिला ध्‍वनियों से गूंजते रहते थे। कई विलासगृह थे, जो कि शीशे जैसे चमकदार थे, और लताओं से ढंके थे। यहां कई कृत्रिम टीले थे, और जल से ऊपर तक भरे सरोवर और झीलें कमल तङाग जिनमे हंस और बत्तखें, चक्रवात इत्‍यादि किल्‍लोल करते रहते थे। यहां कई सरोवरों में बहुत से जलीय पौधों की भी भरमार थी। यहां रहकर, शहर को भोगकर पांडवों की खुशी दिनोंदिन बढती गई थी। भीष्‍म पितामह और धृतराष्‍ट्र कि इपने प्रति दर्शित नैतिक व्‍यवहार के परिणामस्‍वरूप पांडवों ने खांडप्रस्‍थ को इंद्रप्रस्‍थ में परिवर्तित कर दिया। पाण्‍डुकुमार अर्जुन और कृष्‍ण जी ने समस्‍त देवताओं को युद्ध मे परास्‍त कर दिया। इसके फलस्‍वरूप अर्जुन ने अग्निदेव से दिव्‍य गाण्‍डीव धनुष और उत्तम रथ प्राप्‍त किया और कृष्‍ण जी ने सुदर्शन चक्र प्राप्‍त किया था। उन्‍हें युद्ध में भगवान् कृष्‍ण जैसे सारथि मिले थे। तथा उन्‍होंने आचार्य द्रोण से ब्रह्मास्‍त्र आदि दिव्‍य आयुध और कभी नष्‍ट न होने वाले बाण प्राप्‍त किये थे। इन्‍द्र अप्रे पुत्र अर्जुन की वीरता देखकर अतिप्रसन्‍न हुए। इन्‍द्र के कहने पर देव शिल्पि विश्‍वकर्मा और मय दानव ने मिलकर खाण्‍डववन को इन्‍द्रपुरी जितने भव्‍य नगर मे निर्मित कर दिया, जिसे इन्‍द्र्प्रस्‍थ नाम दिया गया। 
इन्‍द्रप्रस्‍थ की स्‍थापना इन्‍द्रप्रस्‍थ की स्‍थापना Reviewed by Kahaniduniya.com on नवंबर 07, 2019 Rating: 5

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