मिल्खा सिंह का जन्म पाकिस्तान के
लायलपुर में 8 अक्टूबर 1935 को हुआ था।
उन्होंने अपने माता-पिता को भारत पाक
विभाजन के समय हुए दंगों में खो दिया था।
वह भारत उस ट्रेन से आए थे जो पाकिस्तान
का बॉर्डर पर करके शरणार्थियों को भारत लाई थी। अत: परिवार के नाम पर उनकी सहायता
के लिए उनके बङे भाई-बहन थे।
मिल्खा सिंह का नाम सुर्खियों में तब आया
जब उन्होंने कटक में हुए राष्ट्रीय खेलों में 200 तथा 400 मीटर में रिकॉर्ड तोङ
दिए।
1958 में ही उन्होंने टोकियो में हुए
एशियाई खेलों में 200 तथा 400 मीटर में एशियाई रिकॉर्ड तोङते हुए स्वर्ण पदक
जीते।
इसी वर्ष अर्थात 1958 में कार्डिफ
(ब्रिटेन) में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में भी स्वर्ण पदक जीता।
उनकी इन्हीं सफलताओं के कारण 1958 में
भारत सरकार द्वारा उन्हें ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया।
मिल्खा सिंह का नाम ‘फ्लाइंग सिख पङने
का भी एक कारण था। वह तब लाहौर में भारत-पाक प्रतियोगिता में दौङ रहे थे। वह एशिया
के प्रतिष्ठित धावक पाकिस्तान के अब्दुल खालिक को 200 मीटर में पछाङते हुए तेजी
से आगे निकल गए, तब लोगों ने कहा- मिल्खा सिंह दौङ नहीं रहे थे, उङ रहे थे।”
बस
उनका नाम ‘फ्लाइंग सिख’ पङ गया।
मिल्खा सिंह ने अनेक बार अपनी खेल योग्यता
सिद्ध की। उन्होंने 1968 के रोम ओलंपिक में 400 मीटर दौङ में ओलपिंक रिकॉर्ड तोङ
दिया। उन्होंने ओलंपिक के पिछले 59 सेकंड का रिकार्ड तोङने हुए दौङ पूरी की।
उनकी इस उपलब्धि को पंजाब में परी-कथा की
भांति यादि किया जाता है और यह पंजाब की समृद्ध विरासत का हिस्सा बन चुकी है। इस
वक्त अनेक ओलंपिक खिलाडियों ने रिकॉर्ड तोङा था। उनके साथ् विश्व के श्रेष्ठतम
एथलीट हिस्सा ले रहे थे।
1960 में रोम ओलंपिक में मिल्खा सिंह ने
400 मीटर दौङ की प्रथम हीट में द्वितीय स्थान (47.6 सेकंड) पाया था। फिर सेमी
फाइनल में 45.90 सेकंड का समय निकालकर अमेरिका खिलाङी को हराकर द्वितीय स्थान
पाया था।
फाइनल में वह सबसे आगे दौङ रहे थे। उन्होंने
देखा कि सभी खिलाङी काफी पीछे हैं अत: उन्होंने अपनी गति थोङी धीमी कर दी। परन्तु
दूसरे खिलाङी गति बढाते हुए उनसे आगे निकल गए। अब उन्होंने पूरा जोर लगाया, परन्तु
उन खिलाङियों से आगे नहीं निकल सके।
अमेरिका खिलाङी ओटिस डेविस और कॉफमैन ने
44.8 सेकंड का समय निकाल पर प्रथम व द्वितीय स्थान प्राप्त किया। दक्षिण
अफ्रीका के मैल स्पेन्स ने 45.4 सेकंडमें दौङ पूरी कर तृतीय स्थान प्राप्त किया।
मिल्खा सिंह ने 45.6 सेकंड का समय निकाल कर मात्र 0.1 सेकंड से कांस्य पदक पाने
का मौका खो दिया।
मिल्खा सिंह को बाद में अहसास हुआ कि गति
को शुरू में कम करना घातक सिद्ध हुआ। विश्व के महान एथलीटों के साथ प्रतिस्पर्धा
में वह पदक पाने से चूक गए।
मिल्खा सिंह ने खेलों में उस समय सफलता
प्राप्त की जब खिलाङियों के लिए कोई सुविधाएं उपलब्ध नहीं थीं, न ही उनके लिए
किसी ट्रेनिंग की व्यवस्था थी। आज इतने वर्षो बाद भी कोई एथलीट ओलंपिक मे पदक
पाने में कामयाब नहीं हो सका है।
रोम ओलंपिक में मिल्खा सिंह इतने
लोकप्रिय हो गए थे कि जब वह स्टेडियम में घुसते थे, दर्शक उनका जोशपूर्वक स्वागत
करते थे। यद्यपि वहाँ वह टॉप के खिलाङी नहीं थे, परन्तु सर्वश्रेष्ठ धावको में उनका नाम अवश्य था। उनकी लोकप्रियता का
दूसरा कारण उनकी बढी हुई दाढी व लंबे बाल थे।
लोग उस वक्त सिख धर्म के बारे में अधिक
नहीं जानते थे। अत: लोगों को लगता था कि कोई साधु इतनी अच्छी दौङ लगा रहा है।
उस वक्त ‘पटखा’ का चलन भी नहीं था, अत:
सिख सिर पर रूमाल बाँध लेते थे। मिल्खा सिंह की लोकप्रियता का एक अन्य कारण यह
था कि रोम पहुंचने के पूर्व वह यूरोप के टूर में अनेक बङे खिलाङियों को हरा चुके
थे और उनके रोम पहुँचने के पूर्व उनकी लोकप्रियता की चर्चा वहाँ पहुंच चुकी थी।
मिल्खा सिंह के जीवन में दो घटनाएं बहुत
महत्व रखती हैं। प्रथम-भारत-पाक विभाजन की घटना जिसमें उनके माता-पिता का कत्ल
हो गया तथा अन्य रिश्तेदार को भी खोना पङा। दूसरी-रोम ओलंपिक की घटना, जिसमें वह
पदक पाने से चूक गए।
इसी प्रथम घटना के कारण जब मिल्खा सिंह
को पाकिस्तान में दौङ प्रतियोगिता में भाग लेने का आमंत्रण मिल्खा को मिला तो वह
विशेष उत्साहित नहीं हुए।
लेकिन उन्हें एशिया के सर्वश्रेष्ठ
खिलाङी के साथ दौङने के लिए मनाया गया। उस वक्त पाकिस्तान का सर्वश्रेष्ठ धावक
अब्दुल खादिक था जो अनेक एशियाई प्रतियोगिताओं में 200 मीटर की दौङ जीत चुका था।
ज्यों ही 200 मीटर की दौङ शुरू हुई यूं
लगा कि मानो मिल्खा सिंह दौङ नहीं, उङ रहें हों।
उन्होंने अब्दुल खादिल को बहुत पीछे छोङ
दिया। लोग उनकी दौङ को आश्चर्यचकित होकर देख रहे थे। तभी यह घोषणा की गई कि मिल्खा
सिंह दौङने के स्थान पर उङ रहे थे और मिल्खा सिंह को ‘फ्लाइंग सिख’ कहा जाने
लगा।
उस दौङ के वक्त पाकिस्तान के राष्ट्रपति
जनरल अय्यूब भी मौजूद थे। इस दौङ में जीत के पश्चात् मिल्खा सिंह को राष्ट्रपति
से मिलने के लिए वि.आई.पी. गैलरी में ले जाया गया।
मिल्खा सिंह द्वारा जीती गई ट्रॉफियां,
पदक, उनके जूते (जिन्हें पहन कर उन्होंने विश्व रिकॉर्ड तोङा था), ब्लेजर यूनीफार्म
उन्होंने जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में बने राष्ट्रीय खेल संग्रहालय को दान में
दे दिया था।
1962 में एशियाई खेलों में मिल्खा सिंह
ने स्वर्ण पदक जीता। खेलों से रिटायरमेंट के पश्चात् वह इस समय पंजाब में खेल,
युवा तथा शिक्षा विभाग में अतिरिक्त खेल निदेशक के पद पर कार्यरत हैं।
उनका विवाह पूर्व अन्तरराष्ट्रीय खिलाङी
निर्मल से हुआ था। मिल्खा सिंह के एक पुत्र तथा तीन पुत्रियां है। उनका पुत्र
चिरंजीव मिल्खा सिंह (जीव मिल्खा सिंह भी कहा जाता है) भारत के टॉप गोल्फ
खिलाङियों में से एक है तथा राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेकों पुरस्कार
जीत चुका है।
उसने 1990 में बीजिंग के एशियाई खेलों में
भी भाग लिया था। मिल्खा सिंह की तीव्र इच्छा है कि कोई भारतीय एथलीट ओलंपिक पदक
जीते, जो पदक वह अपनी छोटी-सी गलती के कारण जीतने से चूक गए थे।
मिल्खा सिंह चाहते हैं कि वह अपने पद से
रिटायर होने के पश्चात् एक एथलेटिक अकादमी चंडीगढ या आसपास खोलें ताकि वह देश के
लिए श्रेष्ठ एथलीट तैयार कर सकें। मिल्खा सिंह अपनी लौह इच्छा शक्ति के दम पर
ही उस सथान पर पहुँच सके, जहाँ आज कोई भी खिलाङी बिना औपचारिक ट्रेनिंग के नहीं
पहुँच सका।
उपलब्धियां
1957 में मिल्खा सिंह ने 400 मीटर में
47.5 सेकंड का नया रिकॉर्ड बनाया।
टोकियो जापान में हुए तीसरे एशियाड (1958)
में मिल्खा सिंह ने 400 मीटर तथा 200 मीटर में दो नए रिकॉर्ड स्थापित किए।
जकार्ता (इंडोनेशिया) में हुए चौथे एशियाड
(1959) में उन्होंने 400 मीटर दौङ में स्वर्ण पदक जीता।
1959 में भारत सरकार ने उनकी उपलब्धियों
के लिए उन्हें ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया।
1960 में रोम ओलंपिक में उन्होंने 400
मीटर दौङ का रिकॉर्ड तोङा।
मिल्खा सिंह
Reviewed by Kahaniduniya.com
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नवंबर 03, 2019
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