पारसमणि


प्राचीन काल की बात है, वृन्‍दावन में यमुना नदी के तट पर बैठे ॠषि‍ सनातन प्रभु-नाम का जाप कर रहे थे। एक निर्धन ब्राह्मण ने आकर नमस्‍कार किया।
    सनातन ने पूछा, भाई, तुम कहाँ से आ रहे हो? तुम्‍हारा नाम क्‍या है? ब्राह्मण बोला-महाराज बहुत दूर से आया हूँ। मेरा दु:ख कहा नही ंजा सकता। प्रभु की पूजा करते हुए एक रात्रि में मानो केाई देवता मुझे कहा गये थे-

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    यमुना के तट पर सनातन गोस्‍वामी के पास जाकर प्रार्थना करना। वह भले साधु तुम्‍हारी मुश्किलों केा दूर करेंगे।सनातन बोल, भाई मेरी उम्‍मीद पर नू यहाँ आया है। पर मैं क्‍या हूँ? जो कुछ था, उसे फेंककर सिर्फ यह झोली लेकर जगत् में निकल पङा हूँ। मगर हाँ, मुझे याद आात है। किसी दिन किसी को देने के लिए काम आयेगी, यह सोचकर उस जगह पर रेती में एक मणि दबाकर रखी हुई है। जाओ भाई, उसे ले जाओ। तेरा दु:ख उससे दूर होगा। तुझे बहुत पैसा मिलने वाला है।
    पारसमणि! अहा हा! ब्राह्मण भागा-भागा गया तथा मुनि द्वारा बतायी जगह पर खोदकर मणि निकाल लाया। अपने लोहे के तावीज से मणि को स्‍पर्श कराते ही वह सोने का हो गया। ब्राह्मण प्रसन्‍नता से नाचने लगा। खूब नाचा। दिल मे उसने अनेक तरह के महल खङे कर लिये। कौन-कौन से सुख भोगूंगा, उनकी कई तरह की कल्‍पनाएँ करने लगा, फिर थककर आराम करने के प्रति नदी के तट पर जा बैठा। यमुना के प्रवाह का मधुर कलरव सुनकर चित्त खामोश हो गया। चारों ओर फूलों और पेङों की शोभा देखने लगा। पक्षियों के कलोल सुनने लगा तथा सामने सूरज डूबने का मन्‍जर देखने लगा। ब्राह्मण की एक नजर इस अद्भूत सौन्‍दर्य पर लगी हुई थी तथा दूसरी आँख अपने सपनों के उन महलों की ओर थी। उसका ह्रदय डोलने लगा। उसे सनातन गोस्‍वामी का स्‍मरण हो आया। उसे कई बातें याद आने लगीं।

    ब्रह्मण दौङता-दौङता सनातन गोस्‍वामी के पास जाकर चरणों में गिर पङा। नेत्रों में आँसू भरकर भदगद् होकर बोला, जिसने अनन्‍त सम्‍पत्ति देने वाली मणि मिट्टी के समान समझकर दे दी, उसके पैरों की धूल ही मुझे चाहिए। यह मणि मुझे नहीं चाहिए।यह कहकर उसने मणि को नदी के गहरे पानी के अन्‍दर फेंक दिया। मणि देने वाला तथा मणि लेने वाला दोनों की जीत गये। 
पारसमणि पारसमणि Reviewed by Kahaniduniya.com on अक्टूबर 15, 2019 Rating: 5

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