अमावस्या तिथि प्रारंभ : 27 अक्टूबर 2019 को दोपहर 12 बजकर 23 मिनट से
अमावस्या तिथि समाप्त : 28 अक्टूबर
2019 को सुबह 09 बजकर 08 मिनट तक
लक्ष्मी पूजन मुहुर्त :
27 अक्टूबर 2019 को शाम 06 बजकर 42 मिनट
से रात 08 बजकर 12 मिनट तक
कुल अवधि 01 घंटे 30 मिनट
जय मां लक्ष्मी जी आरती
दिवाली पर मां लक्ष्मी का घर में आगमन
होने पर लोगों का भाग्य बदल जाता है। दिवाली पर प्रथम पूज्य गणेश और मां लक्ष्मी
की पूजा की जाती है। पूजा के बाद आरती उतारी जाती है, क्योंकि मां लक्ष्मी घर
में आती हैं तो लोगों का भाग्य बदल जाता है।
आइए आप भी मां लक्ष्मी की आरती करिये।
ॐ जय लक्ष्मी माता, भैया जय लक्ष्मी माता
तुमको निशदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता
ॐ जय लक्ष्मी माता भैया जय लक्ष्मी माता
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता
सूय-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ॠषि गाता
ॐ जय लक्ष्मी माता भैया जय लक्ष्मी माता
तुम पाताल-निवासिनी, तुम ही शुभदाता
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता
ॐ जय लक्ष्मी माता भैया जय लक्ष्मी माता
जिस घर में तुम रहतीं, मन नहीं घबराता
ॐ जय लक्ष्मी माता भैया जय लक्ष्मी माता
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता
खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता
ॐ जय मां लक्ष्मी माता भैया जय लक्ष्मी
माता
शुभ-गुण मन्दिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता
ॐ जय मां लक्ष्मी माता भैया जय लक्ष्मी
माता
महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई नर गाता
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता
ॐ जय लक्ष्मी माता भैया जय लक्ष्मी माता
जय मां लक्ष्मी भैया की जय हो ।।
गणेश जी आरती
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।।
एकदन्त दयावन्त चारभुजादारी।
माथे पर तिलक सोहे मूसे की सवारी।।
पान चढे फूल चढे और चढे मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे सन्त करें सेवा।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता पार्वती पिता महादेवा।।
अन्धे को आँख देत, कोढिन को काया।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन का माया।।
’सूर’ श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।।
दिवाली पूजन विधि
माता लक्ष्मीजी के पूजन की सामग्री अपने
सामर्थ्य के अनुसार होना चाहिए। इसमें लक्ष्मीजी को कुछ वस्तुएँ विशेष प्रिय
हैं। उनका उपयोग करने से वे शीघ्र प्रसन्न होती हैं। इनका उपयोग अवश्य करना
चाहिए। वस्त्र में इनका प्रिय वस्त्र लाल-गुलाबी या पीले रंग का रेशमी वस्त्र
है।
माताजी को पुष्प में कमल व गुलाब प्रिय
है। फल में श्रीफल, सीताफल, बेर अनार व सिंघाङे प्रिय हैं। सुगंध में केवङा गुलाब,
चंदन के इत्र का प्रयोग इनकी पूजा में अवश्य करें। अनाज मे चावल तथा मिठाई में घर
में बनी शुद्धता पूर्ण केसर की मिठाई या हलवा, शिरा का नैवेद्य उपयुक्त है।
प्रकाश के लिए गाय का घी, मूंगफली या तिल्ली
का तेल इनको शीघ्र प्रसन्न करता है। अन्य सामग्री में गन्ना, कमल गट्टा, खङी
हल्दी, बिल्वपत्र, गंगाजल, ऊन का आसन, रत्न आभूषण, गाय का गोबर, सिंदूर,
भोजपत्र का पूजन में उपयोग करना चाहिए।
सबसे पहले पवित्रीकरण करें।
आप हाथ में पूजा के जलपात्र से थोङा सा जल
ले लें और अब उसे मूर्तियों के ऊपर छिङकें। साथ में मंत्र पढें। इस मंत्र और पानी
को छिङककर आप अपने आपको पूजा की सामग्री को और अपने आसन को भी पवित्र कर लें।
ॐ पवित्र: अपवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपिवा।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स वाह्मभ्यन्तर
शुचि:।।
पृथ्विति मंत्रस्य मेरूपृष्ठ: ग षि:
सुतलं छन्द:
कूर्मोदेवता आसने विनियोग:।।
अब पृथ्वी पर जिस जगह आपने आसन बिछाया
है, उस जगह को पवित्र कर लें और मां पृथ्वी को प्रणाम करके मंत्र बोलें-
ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं
विष्णुना धृता ।
त्वं व धारय मां देवि पवित्रं कुरू चासनम्
।।
पृथिव्यै नम: आधारशक्तये नम:
अब आचमन करें
पुष्प, चम्मच या अंजुलि से एक बूंद पानी
अपने मुंह में छोङिए और बोलिए-
ॐ केशवाय नम:
और फिर एक बूंद पानी अपने मुंह में छोङिए
और बोलिए-
ॐ नारायणाय नम:
फिर एक तीसरी बूंद पानी की मुंह में छोङिए
और बोलिए-
ॐ वासुदेवाय नम:
फिर ॐ हृषिकेशाय नम: कहते हुए हाथों को
खोले और अंगूठे के मूल से होंठों को पोंछकर हाथों को धो लें। पुन: तिलक लगाने के
बाद प्राणायाम व अंग न्यास आदि करें। आचमन करने से विद्या तत्व, आत्म तत्व और
बुद्धि तत्व का शोधन हो जाता है तथा तिलक व अंग न्यास से मनुष्य पूजा के लिए
पवित्र हो जाता है।
आचमन आदि के बाद आंखें बंद करके मन को
स्थिर कीजिए और तीन बार गहरी सांस लीजिए। यानी प्राणायाम कीजिए क्योंकि भगवान के
साकार रूप का ध्यान करने के लिए यह आवश्यक है फिर पूजा के प्रारंभ में स्वस्तिवाचन
किया जाता है। उसके लिए हाथ में पुष्प, अक्षत और थोङा जल लेकर स्वतिन: इंद्र वेद
मंत्रों का उच्चारण करते हुए परम पिता परमात्मा को प्रणाम किया जाता है। फिर
पूजा का संकल्प किया जाता है। संकल्प हर एक पूजा में प्रधान होता है।
आप हाथ में अक्षत लें, पुष्प और जल ले लीजिए।
कुछ द्रव्य भी ले लीजिए। द्रव्य का अर्थ
है कुछ धन।
ये सब हाथ में लेकर संकल्प मंत्र को
बोलते हुए संकल्प कीजिए कि मैं अमुक व्यक्ति अमुक स्थान व समय पर अमुक
देवी-देवता की पूजा करने जा रहा हूं जिससे मुझे शास्त्रोक्त फल प्राप्त हों।
सबसे पहले गणेशजी व गौरी का पूजन कीजिए। उसके बाद वरूण पूजा यानी कलश पूजन करनी
चाहिए।
हाथ मे थोङा सा जल ले लीजिए और आहृान व
पूजन मंत्र बोलिए और पूजा सामग्री चढाइए। फिर नवग्रहों का पूजन कीजिए। हाथ में
अक्षत और पुष्प ले लीजिए और नवग्रह स्तोत्र बोलिए। इसके बाद भगवती षोडश मातृकाओं
का पूजन किया जाता है। हाथ में गंध, अक्षत, पुष्प ले लीजिए। सोलह माताओं को नमस्कार
कर लीजिए और पूजा सामग्री चढा दीजिए।
सोलह माताओं की पूजा के बाद रक्षाबंधन
होता है। रक्षाबंधन विधि मे मौली लेकर भगवान गणपति पर चढाइए और फिर अपने हाथ में बंधवा
लीजिए और तिलक लगा लीजिए। अब आनंदचित्त से निर्भय होकर महालक्ष्मी की पूजा
प्रारंभ कीजिए।
सामग्री
(1) लक्ष्मी
(2) गणेश
(3-4) मिट्टी
के दो बङे दीपक
(5) कलश, जिस
पर नारियल रखें, वरूण
(6) नवग्रह,
(7)
षोडशमातृकाएं
(8) कोई
प्रतीक
(9) बहीखाता
(10) कलम और
दवात,
(11) नकदी की
संदूकची,
(12)
थालियां, 1,2,3
(13) जल का
पात्र,
(14) यजमान
(15) पुजारी,
(16) परिवार
के सदस्य
(17) आगंतुक।
गोवर्धन पूजा
दिवाली के बाद कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा पर
उत्तर भारत में मनाया जाने वाला गोवर्धन पूजा धूमधाम से मनाया जा रहा है। इसमें हिन्दू
धर्मावलंबी घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन नाथ जी की अल्पना बनाकर उनका
पूजन करते है। तत्पश्चात् ब्रज के साक्षात देवता माने जाने वाले गिरिराज भगवान
(पर्वत) को प्रसन्न करने के लिए उन्हें अन्नकूट का भोग लगाया जाता है।
यह परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है।
उससे पूर्व ब्रज में भी इंद्र की पूजा की जाती थी। मगर भगवान कृष्ण ने यह तर्क
देते हुए कि इंद्र से कोई लाभ नहीं प्राप्त होता जबकि गोवर्धन पर्वत गौधन का
संवर्धन एवं संरक्षण करता है, जिससे पर्यावरण भी शुद्ध होता है। इसलिए इंद्र की
नहीं गोवर्धन की पूजा की जानी चाहिए।
हालांकि इसके बाद इंद्र ने ब्रजवासियों को
भारी वर्षा के द्वारा डराने का प्रयास किया, लेकिन ब्रजवासी भगवान कृष्ण का आसरा
पाकर अपने निर्णय पर अडिग रहे। उन्होंने अपना विचार नहीं बदला और इंद्र के बजाए
गोवर्धन की पूजा शुरू कर दी।
बिहारी ने बताया कि श्रीमद्धागवत में उन्होंने
इस बारे में कई स्थानों पर स्पष्ट उल्लेख किया है। कृष्ण ने दाउ को संबोधित
कर स्पष्ट कहा है कि गोवर्धन उनके गौ-धन की रक्षा करते है। वृक्ष देते है और ऐसे
में हमे उनका पूजन वंदन करना चाहिए। व़ह हमारी प्रकृति की रक्षा करते हैं।
इस प्रकार भगवान कृष्ण ने ब्रज में इंद्र
की पूजा के स्थान पर कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन गोवर्धन पूजाकी परंपरा कर
दी।
ब्रज में स्थित द्वापरकालीन महाङियों,
पर्यावरण एवं यमुना की रक्षा के लिए संघर्षरत जयकृष्ण दास ने इस संबंध में बताया
कि कृष्ण पर्यावरण के सबसे बङे संरक्षक थे। इंद्र के मान-मर्दन के पीछे उनका यही
उद्देश्य था कि ब्रजवासी गौ-धन एवं पर्यावरण के महत्व को समझें और उनकी रक्षा
करें।
गोवर्धन पूजा का पर्व कार्तिक मास के शुक्ल
पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है। इस दिन सुबह शरीर पर तेल क मालिश करके स्नान
करना चाहिए। फिर घर के द्वार पर गोबर से प्रतीकात्मक गोवर्धन पर्वत बनाएं। इस
पर्वत के बीच में पास में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति रख दें। अब गोवर्धन गोवर्धन
पर्वत व भगवान श्रीकृष्ण को विभिन्न प्रकार के पकवानों व मिष्ठानों का भोग लगाएं।
साथ ही देवराज इंद्र, वरूण, अग्नि और राजा बलि की भी पूजा करें। पूजा के बाद कथा
सुनें। प्रसाद के रूप में दही व चीनी का मिश्रण सब में बांट दें। इसके बाद किसी
योग्य ब्राह्मण को भोजन करवाकर उसे दान-दक्षिणा देकर प्रसन्न करें।
गोवर्धन पूजा का महत्व
हमारे कृषि प्रधान देश मे गोवर्धन पूजा
जैसे प्रेरणाप्रद पर्व की अत्यंत आवश्यकता है। इसके पीछे एक महान संदेश पृथ्वी
और गाय दोनों की उन्नती तथा विकास की ओर ध्यान देना और उनके संवर्धन के लिए सदा
प्रयत्नशील होना छिपा है। अन्नकूट का महोत्सव भी गोवर्धन पूजा के दिन कार्तिक
शुक्ल प्रतिपदा को ही मनाया जाता है। सह ब्रजवासियों का मुख्य त्योहार है।
अन्नकूट या गोवर्धन पूजा का पर्व यूं तो
अति प्राचीनकाल से मनाया जाता रहा है, लेकिन आज जो विधान मौजूद है वह भगवान
श्रीकृष्ण के इस धरा पर अवतरित होने के
बाद द्वापर युग से आरंभ हुआ है। उस समय जहां वर्षा के देवता इंद्र की ही उस दिन
पूजा की जाती थी, वहीं अब गोवर्धन पूजा भी प्रचलन में आ गई हैं। धर्मग्रंथों में
इस दिन इंद्र, वरूण अग्नि आदि देवताओं की पूजा करने का उल्लेख मिलता है।
ये पूजन पशुधन व अन्न आदि के भंडार के
लिए किया जाता है। बालखिल्य ॠषि का कहना है कि अनकूट और गोवर्धन उत्सव श्रीविष्णु
भगवान की प्रसन्नता के लिए मनाना चाहिए।
इन पर्वो से गायों का कल्याण होता है, पुत्र, पौत्रादि संततियां प्राप्त होती हैं, ऐश्वर्या और सुख प्राप्त
होता है। कार्तिक के महीने में जो कुछ भी जप होम, अर्चन किया जाता है, इन सबकी फल
प्राप्ति हेतु गोवर्धन पूजन अवश्य करना चाहिए।
दिवाली की तिथि और शुभ मुहूर्त दीवाली एवं लक्ष्मी पूजन का शुभ समय 2019
Reviewed by Kahaniduniya.com
on
अक्तूबर 26, 2019
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