कहां से आया सिंहासन, कौन थीे 32 पुतलियां


प्राचीन समय की बात है। उज्‍जैन में राजा भोज राज्‍य करते थे। वह बङे दानी और धर्मात्‍मा थे। उनके बारे में प्रसिद्ध था कि वह ऐसा न्‍याय करते है कि दूध और पानी अलग-अलग हो जाए। नगरी में एक किसान का एक खेत था। जिसमे उसेन कई साग-सब्‍जी लगा रखी थी।


एक बार की बात है कि खेत मे बङी अच्‍छी फसल हुई। पूरी जमीन पर तो खूब तरकारियां आईं, लेकिन खेत के बीचों-बीच थोङी-सी जमीन खाली रह गई। हालांकि किसान ने उस जमीन पर भी बीज डाले थे। लेकिन वहां कुछ नहीं उगा। किसान ने वहां खेत की रखवाली के लिए एक मचान बना यिा। जब भ्‍ज्ञी किसान मचान पर चढता अपने आप चिल्‍लाने लगता-‘कोई है? राजा भोज को पकङ लाओ औश्र सजा दो। मेरा राज्‍य उससे ले लो। जाओ, जल्‍दी जाओ।’

सारी नगरी मे यह बात आग की तरह फैल गई और राजा भोज के कानों में पहुंची। राजा ने कहा, ‘मुझे उस खेत पर ले चलो। मैं सारी बातें अपनी आंखों से देखना और कानों से सुनना चाहता हूं।

राजा भोज जब उस जगह पहुंचे तो उन्‍होंने भी वही देखा कि किसान मचान पर खङा है और कह रहा है- ‘राजा भोज को फौरन पकङ लाओ और मेरा राज्‍य उससे ले लो।

यह सुनकर राजा चिंतित हो गए। चुपचाप महल में लौटा आए। उन्‍हें रात भर नींद नहीं आई। सवेरा होते ही उन्‍होंने राज्‍य के ज्‍योतिषियों और जानकार पंडितों को इकट्ठा किया। उन्‍होंने अपनी गोपनीय विद्या से पता लगाया कि उस मचान के नीचे कुछ छिपा है। राजा ने उसी समय आज्ञात दी कि उस जगह को खुदवाया जाए।
खोदते-खोदते जब काफी मिट्टी निकल गई तो अचानक एक सिंहासन प्रकट हुआ। सिंहासन के चारों और आठ-आठ पुतलियां यानी कुल बत्तीस पुतलियां खङी थीं। सबके अजरत का ठिकाना न रहा। राजा को खबर मिली तो सिंहासन को बाहर निकालने को कहा, लेकिन कई मजदूरों के जोर लगाने पर भी वह सिंहासन टस-से-मस न हुआ।

तब एक पंडित ने कहा कि यह सिंहासन देवताओं का बनाया हुआ है। अपनी जगह से तब तक नहीं हटेगा जब तक कि राजा स्‍वयं इसकी पूजा-अर्चना न करें।

राजा ने ऐसा ही किया। पूजा-अर्चना करते ही सिंहासन ऐसे ऊपर उठ आया, मानो फूलों का हो। राजा बङे खुश हुए।

सिहांसन में कई तरह के रत्‍न जङे थे जिनकी चमक अनूठी थी। सिंहासन के चारों और 32 पुतलियां बनी थी। उनके हाथ में कमल का एक-एक फूल था। राजा ने हुक्‍म दिया कि खजाने से रूपया लेकर सिंहासन दुरूस्‍त करवाएं।

सिंहासन सुंदर होने में पांच महीने लगे। अब सिंहासन दमक उठा था जो भी देखता, देखता ही रह जाता। पुतलियां ऐसी लगती मानो अभी बोल उठेगीं। राजा ने पंडित को बुलाया और कहा, ‘आप लोग कोई अच्‍छा मुहूर्त निकालें। उस दिन मैं इस सिंहासन पर बैठूंगा।’ दिन तय किया गया। दूर-दूर तक लोगों को निमंत्रण भेजे गए। तरह-तरह के बाजे बजने लगे, महल में खुशियां मनाई जाने लगी।

पूजा के बाद जैसे ही राज ने अपना दाहिना पैर बढाकर सिंहासन पर रखना चाहा कि सारी पुतलियां खिलखिला कर हंस पङी। लोगों को बङा अचंभा हुआ कि यह बेजान पुतलियां कैसे हंस पङी।

राजा ने अपना पैर खींच लिया और पुतलियों से पूछा, ‘ओ सुंदर पुतलियों! सच-सच बताओं कि तुम क्‍यों हंसी?’

पहली पुतली का नाम था। रत्‍नमंजरी। राजा की बात सुनकर वह बोली, ‘राजन! आप बङे तेजस्‍वी हैं, धनी हैं, बलवान हैं, लेकिन इन बस बातों का आपको घमंड भी है। जिस राजा का यह सिंहासन है, वह दानी, वीर और धनी होते हुए भी विनम्र थे। परम दयालु थे। राजा बङे नाराज हुए। पुतली ने समझाया, महाराज, यह सिंहासन परम प्रतापी और ज्ञानी राजा विक्रमदित्‍य का है।

राजा बोले, मैं कैसे मानूं कि राजा विक्रमदित्‍य मुझसे ज्‍यादा गुणी और पराक्रमी थे?

पुतली ने कहा, ‘ठीक है, मैं तुम्‍हें राजा विक्रमदित्‍य की एक कहानी सुनाती हूं।’ सिंहासन बत्तीसी की पहली पुतली रत्‍नमंजरी ने सुनाई एक कहानी-


पहली पुतली रत्‍नमंजरी की कहानी भाग - 0 2 

दुसरी पुतली चित्रलेखा की कहानी भाग - 03  

त्तीसरी पुतली चंद्रकला की कहानी भाग - 04 

चौथी पुतली कामकंदला की कहानी भाग - 05

पांचवी पुतली लीलावती की कहानी भाग - 06

छठी पुतली रविभामा की कहानी  भाग - 07

सातवीं पुतली कौमुदी की कहानी भाग - 08 

आठवीं पुतली पुष्‍पवती की कहानी भाग - 09

नौवीं पुतली मधमालती की कहानी भाग - 10

दसवीं पुतली प्रभावती की कहानी भाग - 11

ग्‍यारहवीं पुतली त्रिलोचना की कहानी  भाग - 12

बारहवीं पुतली पद्मावमी  की कहानी भाग - 13  


कहां से आया सिंहासन, कौन थीे 32 पुतलियां कहां से आया सिंहासन, कौन थीे 32 पुतलियां Reviewed by Kahaniduniya.com on अक्तूबर 27, 2019 Rating: 5

कोई टिप्पणी नहीं:

nicodemos के थीम चित्र. Blogger द्वारा संचालित.