सन 1919 में: खिलाफत आंदोलन


सन 1919 में गांधीजी को इस बात का एहसास होने लगा था कि कांग्रेस कहीं न कहीं कमजोर पङ रही हैं तो उन्‍होंने कांग्रेस की डूबती नैया को बचाने के लिए और साथ ही साथ हिन्‍दू-मुस्लिम एकता के द्वारा ब्रिटिश सरकार को बाहर निकालने के लिए अपने प्रयास शुरू किये, इन उद्देश्‍यों की पूर्ति के लिए वे मुस्लिम समाज के पास गये। खिलाफत आंदोलन वैश्विक स्‍तर पर चलाया गया आंदोलन था, जो मुस्लिमों की कांफ्रेंस रखी और वे स्‍वयं इस कांफ्रेंस के प्रमुख व्‍यक्ति भी थे। इस आंदोलन ने मुस्लिमों को बहुत सपोर्ट किया और गांधीजी के इस प्रयास ने उन्‍हें राष्‍ट्रीय नेता (नेशनल लीडर) बना दिया और कांग्रेस में उनकी खास जगह भी बन गयी, परन्‍तु सन 1922 में खिलाफत आंदोलन बुरी तरह से बंद हो गया और इसके बाद गांधीजी अपने संपूर्ण जीवन ‘हिन्‍दू मुस्लिम एकता’ के लिए लङते रहे, परन्‍तु हिन्‍दू और मुस्लिमों के बीच दूरियां बढती ही गयी।

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सन 1920 में : असहयोग आंदोलन

विभिन्‍न आंदोलनों से निपटने के लिए अंग्रेजी सरकार ने सन 1919 में रोलेट एक्‍त पारित किया। इसी दौरान गांधीजी द्वारा कुछ सभाएं भी आयोजित की गई और इन ही सभाओं की तरह ही अन्‍य स्‍थानों पर भी सभाओं का आयोजन किया गया। इसी प्रकार की एक सभा पंजाब के अमृतसर क्षेत्र में जलियाबाला बाग में बुलाई गयी थी और वहाँ इस शांति सभा को अंग्रेजो ने जिस बेरहमी के साथ रौंदा था, उसके विरोध में गांधीजी ने सन 1920 में असहयोग आंदोलन प्रारम्‍भ किया, इस असहयोग आंदोलन का अर्थ ये था कि भारतीय द्वारा अंग्रेजी सरकार की किसी भी प्रकार से सहायता ना की जाये, परन्‍तु इसमें किसी भी तरह की हिंसा नहीं हो।

चौरा – चौरी कांड
चूँकि ये असहयोग आंदोलन संपूर्ण देश में अहिंसात्‍मक तरीके से चलाया जा रहा था, तो इस दौरान उत्तर प्रदेश राज्‍य के चौरा – चौरी नामक स्‍थान पर जब कुछ लोग शांतिपूर्ण तरीके से रैली निकाल रहे थे, तब अंग्रेजी सैनिकों ने उन पर गोलिया चला दी और कुछ लोगों की इसमें मौत भी हो गई। तब इस गुस्‍से से भरी भीङ ने पुलिस स्‍टेशन मे आग लगा दी और वहाँ उपस्थित 22 सैनिको की हत्‍या कर दी, तब गांधी जी का कहना था कि हमें संपूर्ण आंदोलन के दौरान किसी भी हिंसात्‍मक गतिविधि को नहीं करना था, शायद हम अभी आजादी पाने के लायक नहीं हुए है और इस हिंसात्‍मक गतिविधि के कारण उन्‍होंने आंदोलन वापस ले लिया।

असहयोग आंदोलन

सन 1930 में : सविनय अवज्ञा आंदोलन/नमक सत्‍याग्रह आंदोलन/दांडी यात्रा
सन 1930 में महात्‍मा गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ एक ओर आंदोलन की शुरूआत की अस आंदोलन का नाम था। सविनय अवज्ञा आंदोलन
इस आंदोलन का उद्देश्‍य यह था कि ब्रिटिश सरकार द्वारा जो भी नियम कानून बनाये जाये, उन्‍हें नहीं मानना और उनकी अवहेलना करना, जैसे : ब्रिटिश सरकार ने कानून बनाया था कि कोई भी नमक नहीं बनाएगा, तो 12 मार्च, सन 1930 को उन्‍होंने इस कानून को तोङने के लिए अपनी ‘दांडी यात्रा’ शुरू की वे दांडी नामक स्‍थान पर पहुंचे और वहां जाकर नमक बनाया था और इस प्रकार यह आंदोलन भी शांतिपूर्ण ढंग से ही चलाया गया, इस दौरान कई लीडर और नेता ब्रिटिश सरकार द्वारा निरफ्‍तार किये गये थे।

विस्‍तृत वर्णन

गांधीजी द्वारा नमक सत्‍याग्रह की शुरूआत 12 अप्रेल, सन 1930 को गुजरात के अहमबाद शहर के पास स्थित साबरमती आश्रम से की गयी और यह यात्रा 5 अप्रेल, सन 1930 तक गुजरात में ही स्थित दांडी नमक स्‍थान तक चली यहाँ पहुंचकर गांधीजी ने नमक बनाया और यह कानून तोङा और इस प्रकार राष्‍ट्रव्‍यापी अवज्ञा आंदोलन की शुरूआत हुई। यह भारत के स्‍वतंत्रता सग्राम में महत्‍वपूर्ण चरण था। यह ब्रिटिश सरकार द्वारा नमक बनाये जाने के एकाधिकार पर सीधा प्रहार था और इसी घटना के बाद यह आंदोलन संपूर्ण देश में फैल गया था, इसी समय अर्थात् 26 जनवरी 1930 को भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस ने ‘पूर्ण स्‍वराज’ की घोषणा कर दी थी, महात्‍मा गांधी ने दांडी यात्रा 24 दिनों में पूरी की और इस दौरान उन्‍होंने साबरमती से दांडी तक लगभग 240 मील (390 कि.मी.) की दूरी तक की थी। यहाँ उन्‍होंने बिना किसी टैक्‍स का भुगतान किये नमक बनाया, इस यात्रा की शुरूआत में उनके साथ 78 स्‍वयंसेवक थे। और यात्रा के अंत तक यह संख्‍या हजारों में हो गई थी। यहाँ वे 5 अप्रेल, सन 1930 को पहुंचे और यहाँ पहुंचकर उन्‍होंने इसी दिन सुबह 6.30 बजे उन्‍होने नमक बनाकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अहिंसात्‍मक सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरूआत की और इसे भी हजारों भारतीयों ने मिलकर सफल बनाया।

यहाँ नमक बनाकर महात्‍मा गांधी ने अपनी यात्रा जारी रखी और यहाँ से वे दक्षिण की ओर के समुद्र तटों की ओर बढेँ, इसके पीछे उनका उद्देश्‍य इन समुद्री तटों पर नमक बनाना तो था ही, साथ ही साथ वे कई सभाओं को संबोधित करने का भी कार्य कर रहे थे। यहाँ उन्‍होंने धरसाना नामक स्‍थान पर भी ये कानून तोङा था 4-5 मई, सन 1930 अर्द्धरात्रि को गांधीजी को गिरफ्‍तार कर लिया गया। उकनी गिरफ्‍तारी और इस सत्‍याग्रह ने पूरे विश्‍व का ध्‍यान भारत स्‍वतंत्रता संग्राम की ओर खींचा। ये सत्‍याग्रह पूरे वर्ष चला और गांधीजी की जेल से रिहाई के साथ ही खत, हुआ और वो भी इसीलिए क्‍योंकि द्वितीय गोल मेज सम्‍मेलन के समय वायसराय लार्ड इर्विन नेगोसिएशन के लिए राजी हो गये थे। इस नमक सत्‍याग्रह के कारण लगभग 80,000 लोगों को गिरफ्‍तार किया गया था।

गांधीजी द्वारा चलाया गया यह नमक सत्‍याग्रह उनके ‘अहिंसात्‍मक विरोध’ के सिद्धांत पर आधारित था। उनका शाब्दिक अ‍र्थ हैं- सत्‍य का आग्रह : सत्‍याग्रह, कांग्रेस ने भारत केा स्‍वतंत्रता दिलाने के लिए सत्‍याग्रह को अपना हथियार बनाया और उसके लिए गांधीजी को प्रमुख नियुक्‍त किया, इसी के तहत धरसाना में जो सत्‍याग्रह हुआ था, उसमें अंग्रेजी सैनिकों ने हजारों लोगों को मार दिया था, परन्‍तु अंतत: इसमें गांधीजी की सत्‍याग्रह नीति कारगर सिद्ध हुई और अंग्रेजी सरकार को झुकना पङा, इस सत्‍याग्रह का अमेरिकन एक्टिविस्‍ट मार्टिन लूथर, जेम्‍स बेवल, आदि पर बहुत ही गरा प्रभाव पङा, जो सन 1960 के समय में रंग – भेद नीति (काले और गोरे लोगों में भेदभाव) और अल्‍पसंख्‍यकों (माइनॉरिटी) के अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे थे। जिस तरह ये सत्‍याग्रह और अवज्ञा आंदोलन फैल रहा था, तो इसे सही मार्गदर्शन के लिए मद्रास में राजगोपालाचारी और उत्तर भारत में खान अब्‍दुल गफ्‍फार खान को इसकी बागडोर सौपी गयी। 


सन 1919 में: खिलाफत आंदोलन सन 1919 में: खिलाफत आंदोलन Reviewed by Kahaniduniya.com on अक्तूबर 02, 2019 Rating: 5

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