पत्नि के हाथों मजबूर हुए मगरमच्छ ने भी एक चाल चली और बन्दर से
कहा कि उसकी भाभी उसे मिलना चाहती है इसलिए वह उसकी पीठ पर बैठ जाये ताकि सुरक्षित
उसके घर पहॅुच जाए, बन्दर भी अपने मित्र की बात का भरोसा कर, पेङ से नदी में कूदा
और उसकी पीठ पर सवार हो गया, जब वे नदी के बीचों-बीच पहुंचे मगरमच्छ ने सोचा कि
अब बन्दर को सही बात बताने में कोई हानि नहीं और उसने भेद खोल दिया कि उसकी पत्नी
उसका दिल खाना चाहती है, बन्दर को धक्का तो लगा लेकिन उसने अपना धैर्य नहीं खोया
और तपाक से बोला,
ओह, तुमने, यह बात मुझे पहले क्यों नहीं बताई क्योंकि मैंने तो
अपना दिल जामुन के पेङ की खोखल में सम्भाल कर रखा हैा अब जल्दी से मुझे वापस नदी
के किनारे ले चलो ताकि मैं अपना दिल लाकर अपनी भाभी को उपहार में देकर, उसे खुश कर
सकूं,
मुर्ख मगरमच्छ बन्दर को जैसे ही नदी किनारे ले कर आया बन्दर ने
जोर से जामुन के पेड पर छलांग लगाई और क्रोध में भरकर बोला – अरे मुर्ख, दिल के
बिना भी क्या कोई जिन्दा रह सकता है। जा, आज से तेरी-मेरी दोस्ती समाप्त।

कोई टिप्पणी नहीं: