पेड बन जाओं
एक बार की बात है, एक व्यक्ति
को रोज-रोज जुआ खेलने की बकुरी आदत पड गयी थी, उसकी इस आदत से सभी बडे परेशान
रहते, लोग से समझाने कि भी बहुत कोशिश करते कि वो ये गन्दी आदत छोड दे, लेकिन वो
हर किसी को एक ही जवाब देता, ‘’मैंने ये आदत नहीं पकडी, इस आदत ने मुझे पकड रखा
है।‘’
और सचमुच वो इस आदत को छोडना
चाहता था, पर हजार कोशिशों के बावजूद वो ऐसा नहीं कर पा रहा था,
परिवार वालों ने सोचा कि शायद शादी करवा देने से वो ये आदत छोड दे,
सो उसकी शादी करा दी गयी, पर कुछ दिनों तक सब ठीक चला और फिर से वह जुआ खेलने जाना
लगा, उसकी पत्नी भी अब काफी चिंतित रहने लगी, ओर उसने निश्चय किया कि वह किसी न
किसी तरह अपने पति की इस आदत को छुडवा कर ही दम लेगी,
एक दिन पत्नी को किसी सिद्व साधु-महात्मा के बारे में पता चला,
और वो अपने पति केा लेकर उनके आश्रम पहुंची, साधु ने कहा, ‘’बताओं पुत्री तुम्हारी
क्या समस्या है।‘’
पत्नी ने दुखपूर्वक सारी बाते साधु-महाराज को बता दी।
साधु-महाराज उनकी बातें सुनकर समस्या कि जड समझ चुके थे, और
समाधान देने के लिए उन्होंने पति-पत्नी को अगले दिन आने के लिए कहा।
आगले दिन वे आश्रम पहुंचे तो उन्होंने देखा कि साधु-महाराज एक पेड
को पकड के खडे है,
उन्होंने साधु से पूछा कि आप ये क्या कर रहे है, और पेड को इस
तरह क्यों पकडे हुए हैं।
साधु ने कहा, ‘’आप लोग जाइये और कल आइयेगा ’’
फिर तीसरे दिन भी पति पत्नी पहुंचे तो देखा कि फिर से साधु पेड
पकड कर खडे हैं,
उन्होंने जिज्ञासा वश पूछा, ‘’महाराज आप ये क्या कर रहे हैं।‘’
साधु बोले, ‘’पेड मुझे छोड नहीं रहा है, आप लोग कल आना,’’
पति-पत्नी को साधु जी का व्यवहार कुछ विचित्र लगा, पर वे बिना
कुछ कहे वापस लौट गए,
अगले दिन जब वे फिर आये तो देखा कि साधु महाराज अभी भी उसी पेड को
पकडे खडे है,
पति परेशान होते हुए बोला, ‘’बाबा आप ये क्या कररहे हैं, आप इस
पेड को छोड कयों नहीं देते।
साधु बोले ‘’मैं क्या करू बालक ये पेड मुझे छोड ही नहीं रहा है,
पति हॅसते हुए बोला, ‘’महाराज आप पेड को पकडे हुए हैं, पेड आप को
नहीं। ....आप जब चाहें उसे छोड सकते हैं,’’
साधू-महाराज गंभीर होते हुए बोले, ‘’ इतने दिनों से मैं तुम्हे क्या
समझाने कि कोशिश कर रहा हॅू। यही न कि तुम जुआ खेलने की आदत को पकडे हुए हो ये आदत
तुम्हे नहीं पकडे हुए है।‘’
Reviewed by Kahaniduniya.com
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सितंबर 05, 2019
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