महात्मा गांधी और खान अब्दुल गफ्फार
खां (सीमांत गांधी) एक ही जेल में थे। देशी विदेशी जेलर गांधीजी का बहुत सम्मान
करते थे। गांधीजी भी जेल के नियमों का सख्ती से पालन करते थे। जेलर के आने पर
गांधीजी उनके सम्मान में उठकर खङे हो जाते थे। सीमांत गांधी को गांधीजी का यह
तौर-तरीका नापसंद था। उनका कहना था कि जो सरकार इस देश पर गलत ढंग से हुकूमत कर
रही है, हम भला उसके अधिकारियों को क्यों सम्मान दें। गांधीजी का विचार था कि हम
जहां भी हों, हमें वहां के अनुशासन का पालन करना चाहिए।
एक दिन सीमांत गांधी ने गांधीजी पर आरोप
लगाते हुए कहा-आप जेलर का सम्मान इसलिए करते हैं क्योंकि वह आपको अधिक सुविधाएं
देता है। जैसे हम लोगों को तो हिंदी या अंग्रेजी का अखबार मिलता है लेकिन आपको
गुजराती पत्र-पत्रिकाएं भी मिलती हैं। इसलिए आप जेलर के अहसानमंद हो गए हैं। दूसरे
दिन से गांधीजी ने एक ही अखबार लिया और शेष साहित्य लेने से इंकार कर दिया। एक
माह बीत गया। गांधीजी जेलर के प्रति वही सम्मान प्रदर्शित करते रहे जो पहले किया
करते थे। यह देखकर सीमांत गांधी को अपनी गलती का अहसास हुआ। उन्होंने गांधीजी से
क्षमा मांगी और अगले दिन से सीमांत गांधी भी जेलर के सम्मान में उठकर खङे होने
लगे।
कहने का तात्पर्य यह है कि सैद्धांतिक
विरोध कायम रखते हुए भी परिस्थिति में अपने संस्कारों का त्याग नहीं करना चाहिए।
साथ ही, अपनी गलती स्वीकारने में हिचकिचाना नहीं चाहिए।
जेल में गांधीजी ने पढाया विनम्रता का पाठ
Reviewed by Kahaniduniya.com
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सितंबर 21, 2019
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