चरित्रवान लुहार को कोई प्रलोभन डिगा नहीं पाया

एक लुहार बहुत अच्‍छे हथौङे बनाता था। वह अति निर्धन लेकिन परम संतोषी था। वह न्‍यूनतम कीमत पर हथौङे बनाता और कभी अपने इस हुनर से उसने अतिरिक्‍त लाभ अर्जित करने का प्रयास नहीं किया। एक दिन एक बढई उसके पास आया और बोला-मेरे लिए एक अच्‍छा-सा हथौङा बना दो। हम सात आदमी बाहर से काम करने यहां आए हैं।

मेरा हथौङा घर पर ही छूट गया हैं। लुहार ने कुछ दिनों में बढई को एक बढिया हथौङा बनाकर दे दिया लेकिन दाम कम ही लिए। उस बढई को वह हथौङा इतना अच्‍छा लगा कि उसने अपने साथ काम कर रहे अन्‍य लोगों के समक्ष उसकी प्रशंसा करते हुए उनसे भी लुहार से अपना हथौङा बनवाने का आग्रह किया। उन सभी ने उस लुहार से हथौङे बनवाए और अति प्रसन्‍न भाव से लौटे। एक ठेकेदार ने भी लुहार से कुछ हथौङे बनाने का आग्रह किया। साथ ही यह भी कहा कि पहले बनाए हुए हथौङे से भी बढिया बनाना। इसपर लुहार ने कहा-जब मैं कोई चीज बनाता हूं तो उसे पूर्ण निष्‍ठा और ईमानदारी से बनाता हूं और उसमें कोई कमी नही रखता, चाहे कोई भी बनवाए। शीघ्र ही लुहार की ख्‍याति चारों ओर फैल गई। एक दिन राजा के सेनापति ने आकर उससे कहा-मैं तुम्‍हें डेढ गुने दाम दूंगा और तुम सारे हथौङे महल के कार्य हेतु ही बनाना। लुहार ने यह कहते हुए स्‍पष्‍ट इंकार कर दिया कि मुझे अपने दाम में ही पूर्ण संतुष्टि हैं।


वस्‍तुत: सच्‍चाई और ईमानदारी महान शक्तियां हैं। जिस व्‍यक्ति में ये दोनों मौजूद हों उस चरित्रवान को बङे से बङा प्रलोभन भी डिगा नहीं पाता। इनसे व्‍यक्ति के भीतर आत्मिक बल पैदा होता है जो सर्वश्रेष्‍ठ है।



उत्‍तम विचार – जहां प्रेम नहीं, वहां शांति नहीं हो सकती और जहां पवित्रता नहीं, वहां प्रेम नहीं हो सकता। 
चरित्रवान लुहार को कोई प्रलोभन डिगा नहीं पाया                       चरित्रवान लुहार को कोई प्रलोभन डिगा नहीं पाया Reviewed by Kahaniduniya.com on सितंबर 21, 2019 Rating: 5

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