गरीब वृद्धा की चारपाई ने बचाई लोगों की जान

   
एक व़ृद्धा पनी बेटी से बोली-रेलगाङी के आने में केवल आधा घंटा रहा गया है। लकङी के पुल से गा़ङी गिर पङेगी और असंख्‍य यात्रियों के प्राण चले जाएंगे। वह अभी-अभी धङाके की आवाज सुनकर पुल देखने गई थी, जो भयंकर हिमपात से टूट गया था। वृद्धा गाङी को दूर से ही रोकने का उपाय सोचने लगी। वह पश्चिमी वर्जीनिया की एक निर्जन घाटी में झोपङी बनाकर रहती थी। वहां चारों ओर उजाङ था। बस्‍ती उस स्‍थान से कोसों दूर थी। वृद्धा सोचा कि प्रकाश के द्वारा ड्राइवर कुछ भी नहीं देख सकेगा। प्रकाश देखकर वह गाङी रोक सकता है। गरीबी के कारण घर में कोई दूसरा सामान नहीं था, जिसे चलाकर प्रकाश करें और ड्राइवर को सावधान करें।

अचानक वृद्धा की नजर चारपार्इ्र पर गई। उसने जल्‍दी से अपनी बेटी की मदद से चारपाई को तोङ डाला और रेलवे लाइन पर रख दिया। दियासलाई से आग लगाई कि रेलगाङी की सीटी सुनाई दी। ड्राइवर ने प्रकाश देखकर दूर से ही रेलगाङी को धीमा कर दिया। जब गाङी रूकी और ड्राइवर ने टूटा पुल देखा तो वह उस निर्धन वृद्धा के प्रति सम्‍मान में झुक गया। उसने अपने घर की एकमात्र चारपाई को तोङकर सैकङों जाने बचा ली थीं।

वस्‍तुत: किसी भी अच्‍छे कार्य को करने के लिए साधनों की नहीं, बल्कि इच्‍छाशक्ति की जरूऱ्त होती है। यदि मन में दूसरों के कल्‍याण की चाह हो तो राह अपने आप निकल आती है।
  
                                                                                                                                                                                                                                                                                          

उत्‍तम विचार – क्रोध की भाषा ही महाभारत की परिभाषा है। 
गरीब वृद्धा की चारपाई ने बचाई लोगों की जान                    गरीब वृद्धा की चारपाई ने बचाई लोगों की जान Reviewed by Kahaniduniya.com on सितंबर 12, 2019 Rating: 5

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