श्राद्ध पक्ष का हिन्दु धर्म में बङा
महत्व है। प्राचीन सनातन धर्म के अनुसार हमारे पूर्वज देवतुल्य हैं और इस धरा पर
हमने जीवन प्राप्त किया है और जिस प्रकार उन्होंने हमारा लालन-पालन कर हमें कृतार्थ
किया है उससे हम उनके ॠणी हैं। समर्पण और कृतज्ञता की इसी भावना से श्राद्ध पक्ष
प्रेरित है, जो जातक को पितर ॠण से मुक्ति मार्ग दिखाता है।
गरूङ पुराण में वर्णित पितर ॠण मुक्ति
मार्ग रेखा।
अर्थात् समयानुसार श्राद्ध करने से कुल
में कोई दुखी नही रहता। पितरों की पूजा करके मनुष्य आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग,
कीर्ति, पुष्टि, बल, श्री, पशु, सुख और धन-धान्य प्राप्त करता है।
देवकार्य से भी पितृकार्य का विशेष महत्व
है। देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी है।
‘श्राद्ध’ शब्द ‘श्रद्धा’ से बना है, जो श्राद्ध
का प्रथम अनिवार्य तत्व है अर्थात् पितरों के प्रति श्रद्धा तो होनी ही चाहिए।
आश्विन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से अमावस्या तक का समय श्राद्ध या महालय
पक्ष कहलाता है। इस अवधि के 16 दिन पितरों अर्थात श्राद्ध कर्म के लिए विशेष रूप
से निर्धारित किए गए हैं। यही अवधि पितृ पक्ष के नाम से जानी जाती है।
क्यों की जाती है पितृपूजा?
पितृ पक्ष में किए गए कार्यो से पूर्वजों
की आत्मा को शांति प्राप्त होती है तथा कर्ता को पितृ ॠण से मुक्ति मिलती है।
आत्मा की अमरता का सिद्वांत तो स्वयं भगवान श्री कृष्ण गीता में उपदेशित करते
हैं। आत्मा जब तक अपने परम-आत्मा से संयोग नहीं कर लेती, तब तक विभिन्न योनियों
में भटकती रहती है और इस दौरान उसे श्राद्ध कर्म में संतुष्टि मिलती है।
शास्त्रों में देवताओं से पहले पितरों को
प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी कहा गया है। यही कारण है कि देवपूजन से पूर्व पितर
पूजन किए जाने का विधान हैं।
क्यों करते हैं श्राद्ध क्यों होती है पितृपूजा
Reviewed by Kahaniduniya.com
on
सितंबर 12, 2019
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