महात्मा गांधी का एक शिष्य था अमीचंद।
वह अत्यंत जिज्ञासु प्रवृति का था। वह प्राय: गांधीजी से कई विषयों पर चर्चा करता ओर
अपनी शंकाओं व प्रश्नों का समाधान उनसे प्राप्त करता। गांधीजी चूकिं स्वयं अत्यंत
ज्ञानी थे ओर बौद्धिक, सामाजिक, राजनीतिक व नैतिक आदि विविध विषयों पर वार्तालाप
करना उन्हें प्रिय था, इसलिए अमीचंद को उन्होंने कभी निराश नहीं किया। एक दिन
अमीचंद प्रात:काल आया और गांधीजी के चरणस्पर्श कर एक
ओर बैठ गया। गांधीजी ने अपने हाथ का कार्य संपन्न कर अमीचंद से पूछा-आज किस विषय
पर बात करना चाहते हो। अमीचंद बोला-बापू मैं अछूतोद्धार पर आपका मत जानना चाहता
हूं।
गांधीजी उसके प्रश्न का जवाब देने ही
वाले थे कि तभी लक्ष्मी नामक एक हरिजन बालिका वहां आई, जिस को गांधीजी ने गोद ले
रखा था। लक्ष्मी आते ही गांधीजी की गोद में बैठ गई और बिस्किट खाने लगी। उसने आधा
बिस्किट खाकर शेष गांधीजी के मुंह मे रख दिया, जिसे गांधीजी ने सहर्ष खां लिया।
तभी अमीचंद उठकर जाने लगा तो गांधीजी ने पूछा-क्या हुआ? बैठो, तुम्हारे प्रश्न
का उत्तर तो मेंने दिया ही नहीं। तभी अमीचंद ने कहा-बापू मेरे प्रश्न का उत्तर
मुझे मिल गया। अब मैं चलता हूं। यह था गांधीजी का अछूत प्रेम, जो मात्र उनकी वाणी
का ही नहीं, बल्कि उनके आचरण का भी हिस्सा था।
वस्तुत: समाज सुधार कोरी बातों से नहीं होता।
उसके लिए स्वयं की जीवनशैली को एक आदर्श के रूप में प्रस्तुत करना होगा। कहने से
अधिक करना महत्वपूर्ण है क्योंकि यही परिणामदायी होता है।
उत्तम विचार – उस सुख का क्या महत्व जो
वेदना के मूल्य पर नहीं खरीदा गया हो।
गांधीजी ने दिया भेदभाव मिटाने का संदेश
Reviewed by Kahaniduniya.com
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सितंबर 21, 2019
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