एक बार जैतवन के सभी ग्रामवासी भगवान
बुद्ध के दर्शन करने और उपदेश सुनने के लिए एकत्र हुए। उस समय महाकश्यप, मौदगल्यायन,
सारिपुत्र, युंद और देवदत्त जैसे प्रबुद्धजन बुद्ध के साथ धर्म विषयक गंभीर चर्चा
में तन्मय थे। ग्रामवासी थोङा ठिठकर खङे हो गए क्योंकि इतने ज्ञानीजनों के बीच
उन सभी को असहज-सा महसूस हो रहा था। कुछ देर बाद बुद्ध की दृष्टि इन ग्रामवासियों
पर पङी। उन्होंने तुरंत धर्म चर्चा रोक दी। प्रबुद्धजन बुद्ध के इस व्यवहार पर
चकित हो उठे और प्रश्नात्मक दृष्टि से उनकी ओर देखा। बुद्ध अनाथ पिण्डक नाक जिज्ञासु
से बोले-‘भद्र उठो। सामने ब्राहमण मंडली खङी है, उन्हें आसन दो और आतिथ्य की
सामग्री ले आओ।‘
अनाथ पिण्डक ने पीछे मुङकर देखा तो उसे
ब्राहमण मंडली तो कहीं नहीं दिखी, मैले-कुचैले या फटे वस्त्रों में खङे
ग्रामवासियों का झुंड दिखाई दिया। पिण्डक ने शक्ति स्वर में कहा-‘देव इन लोगों
में एक भी ब्राहमण नहीं हैं ये सभी तो निम्न जाति के हैं। कई तो इनमें शूद्र हैं।
बुद्ध गंभीर होकर बोले-‘पिण्डक जो व्यक्ति सदाशयता के प्रति श्रद्धावान है, वह
ब्राहमण ही है। ये लोग श्रेष्ठ प्रयोजन के लिए भावयुक्त होकर आए हैं। इसलिए इस
समय तो ये ब्राहमण ही हैं। अत: तुम इनका समुचित सत्कार करो।‘ कोर्इ भी व्यक्ति अपने जन्म से नहीं,
कर्म से ही महान बनता है।
कथा का सार इंगित करता है कि व्यक्ति जन्म
से नहीं, कर्म से महान होता है। जो सदगुणी हों सत्कर्मी हों, वह शूद्र जाति में जन्मने
के बावजूद ब्राहमण हैं और उसी रूप में उनका आदर किया जाना चाहिए।
उत्तम विचार – ज्ञान पुस्कालयों में
सोता और खर्राटे भरता है, किंतु बुद्धिमत्ता हर कहीं है।
बुद्ध ने संदेश दिया जन्म से नहीं, कर्म से महान बनें
Reviewed by Kahaniduniya.com
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सितंबर 21, 2019
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