जब अपने ही विवाह में नहीं पहुंचे लुई पाश्‍चर


प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रो.  लुई पाश्‍चर को दुनिया रैबीज टीके (कुत्‍ते द्वारा काटने पर उसकी समुचित चिकित्‍सा के लिए) के आविष्‍कारक के रूप में जानती हैं। काम के प्रति उनकी दिवानगी का यह आलम था कि वे खाना-पीना और सोना छोङ देते थे। प्रो. पाश्‍चर के युवावस्‍था की एक घटना है। वे एक विश्‍वविद्यालय के कुलपति की बेटी से प्रेम करते थे और उससे विवाह करना चाहते थे। जब लङकी के माता-पिता तक बात गई तो उन्‍होंने इस विवाह के लिए स्‍वीकृति प्रदान कर दी। विवाह का स्‍थान, दिन, समय तय कर दिया गया। पाश्‍चर बङे प्रसन्‍न थे, लेकिन जिस दिन विवाह समारोह आरंभ हुआ, पाश्‍चर नहीं पहुंचे। 

उनके सभी परिजन, मित्र, और लङकी के परिवार वाले आश्‍चर्यचकित थे। किसी मित्र द्वारा खोजने पर उसने पाश्‍चर को प्रयोगशाला में पाया। वे किसी प्रयोग में व्‍यस्‍त थे। मित्र बोला यार, हद हो गई, आज तुम्‍हारा विवाह है, चर्च में तुम्‍हारी प्रतीक्षा हो रही है। बंद करो अपना यह प्रयोग, यह तो बाद में भी हो जाएगा। पाश्‍चर ने अपनी तल्‍लीनता में उसकी ओर देखे बिना कहा-जरा रूको। कई वर्षो से मैं जो प्रयोग कर रहा था, उसके परिणाम अब निकल रहे हैं। ऐसा न हो कि मेरी वर्षो की मेहनत बेकार हो जाए। पाश्‍चर अपना प्रयोग पूर्ण होने के बाद ही चर्च के लिए रवाना हुए और फिर उनका विवाह धूमधाम से संपन्‍न हुआ। महान कार्य यूं ही पूरे नहीं हो जाते, उन्‍हें पूर्ण करने के लिए अपनी हार्दिक इच्‍छाओं को भी परे करना होता है।


वस्‍तुत: श्रेष्‍ठता पाने के लिए प्रियतम का त्‍याग अनिवार्य शर्त है। जो इस कीमत को चुकाते हैं वे ही महानता के इतिहास में दर्ज होते हैं।


उत्‍तम विचार – शत्रु के लिए अपनी भट्टी को गरम न करो कि वह तुम्‍हें ही भूनकर रख दें।
जब अपने ही विवाह में नहीं पहुंचे लुई पाश्‍चर                        जब अपने ही विवाह में नहीं पहुंचे लुई पाश्‍चर  Reviewed by Kahaniduniya.com on सितंबर 21, 2019 Rating: 5

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