सावित्री को दीपावली पर ही मिला था वरदान


ज्‍योति पर्व के साथ जुङे पावन प्रसंगों की कङी अनंत और अनोखी है, क्‍योंकि दीपावली मात्र एक पर्व अथवा त्‍योहार नहीं है, अपितु पर्वपुंज है। यह अपने अंदर प्रकाश का ऐसा उजियारा धारण करती है, जिसके प्रभाव से अनीति, नीति और सत्‍य की प्रतिष्‍ठा होती है। रावण के आतंक पर श्रीराम की विजय मात्र एक पुराण कथा नहीं है, वरन अपनी उर्वर आध्‍यात्मिक भारतभूमि का जीवंत, अमर और अमिट इतिहास है। यह घोर विलासी जीवनशैली पर महातप की विजय का प्रतीक पर्व है। यह लोकनायक के महाखलनायक पर आधिपत्‍य का महापर्व है। प्रचलित मान्‍यताओं के अनुसार इस महापर्व पर भगवान श्रीराम की रावण पर विजय के बाद अयोध्‍या आगमन पर नागरिकों ने दीपावली को आलोक पर्व के रूप में मनाया। तभी से यह दीप महोत्‍सव राष्‍ट्र के विजय पर्व के रूप में मनाया जाता है। दीपोत्‍सव के इस पर्व की महत्‍ता और विशेषता के अगणित-असंख्‍य प्रसंग हैं। प्रतिव्रता सावित्री ने इसी दिन अपने महासंकल्‍प के उदभूत महातप द्वारा यमराज के विधान को मिटाकर रूपांतरित जीवन का मनोवांछित वरदान पाया था। इसी दिन धर्मराज यम ने महाजिज्ञासु नचिकेता को दिव्‍य ज्ञान दिया था। जैन तीर्थकर भगवान महावीर ने इसी दिन निर्वाण प्राप्‍त किया था। अत: चेतना जगत की इन महाघटनाओं की दीप जलाकर स्‍तुति-वंदना की जाती है।


आइए, इस दीपोत्‍सव में हम संकल्‍प लें कि निराशा के अंधकार को आशाओं के छोटे-छोटे दीपों से प्रकाशित करेंगे। इस सार्थक समझ से ही इस महापर्व की मांगलिक भावना अक्षुण्‍ण रह सकेगी।



उत्‍तम विचार – निराशा के तमस को आशाओं के छोटे-छोटे दीपों से मिटाना होगा। 
सावित्री को दीपावली पर ही मिला था वरदान                         सावित्री को दीपावली पर ही मिला था वरदान Reviewed by Kahaniduniya.com on सितंबर 21, 2019 Rating: 5

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