कष्ट सहकर भी दिया जीवन जीने का संदेश
यह घटना रूस के एक विमान अभियंता इंजीनियर से संबद्व
है। प्रथम विश्वयुद्व चल रहा था, चारों ओर मारकाट मची थी। लाखें लोग काल के ग्रास
बन रहे थे और अनेक अपाहिज हो रहे थे। इस भीषण माहौल में यह अभियंता भी रूस की और
से युद्व में शामिल हुआ। दुर्भाग्य से युद्व में उसे एक पैर गंवाना पङा। महीनों
तक वह अस्पताल में रहा। जब ठीक हुआ तो डॉक्टरों ने सलाह दी कि नकली पैर लगवा ले
ताकि चलने फिरने में व अन्य कार्य करने में असुविधा ने हो। उसने चिकित्सकों की
सलाह मानकर नकली पैर लगवा लिया। अब वह आसानी से चल-फिर सकता था। एक दिन वह घायल
लोगों केा देाने लगा। उसने पाया कि अंग-भंग हुए लोगों में पूर्णत: निराशा के भाव हैं। सो उसने उनकी हौसला अफजाई करते हुए
कहा-देखो मैंने नकली पैर लगवा लिया। अब मुझे कोई पेरशानी नहीं है और इस नकली पैर
का सबसे बङा लाभ यह है कि चोट लगने का अहसास नहीं होता।
यह कहकर उसने एक आदमी को बेंत देकर स्वयं के पैर पर
मारने का आग्रह किया। उस व्यक्ति ने कसकर बेंत मारी। अभियंता मुस्कुराकर
बोला-देखा, मुझे दर्द नहीं हुआ। उसके इस कृत्य पर उपस्थित मरीजों के मन से निराशा
के भाव जाते रहे। जब अभियंता बाहर निकला तो उसके चेहरे पर पीङा के भाव उभर आए क्योंकि
गलती से उस आदमी ने उसके असली पैर पर बेंत मार दी थी किंतु अगले ही क्षण वह मुस्कुराकर
आगे बढ गया।
वस्तुत: दुर्दशा
के प्राप्त लोगों में जीवन के प्रति आशा जागृत करने के लिए कई बार स्वयं को भी
कष्ट सहना होता है किंतु यह सदैव सकारात्मक परिणाम देता हैं।
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