मृत्‍यु के भय से लालची ने छोड दिया पैसों का मोह

मृत्‍यु के भय से लालची ने छोड दिया पैसों का मोह

किसी नगर में एक आदमी रहता था। उसमें धन कमाने की लालसा पैदा हुई। उसके लिए उसने प्रयत्‍न आरंभ किया। देखते–देखते उसके पास लाखों की संपत्ति हो गई। पर ज्‍यों-ज्‍यों पैसा आता गया, उसका लोभ बढता गया। वह बडा खुश था। कहां तो उसके पास एक फूटी कौडी नहीं थी और कहां अंब उसकी तिजोरी भरी पडी थी सब प्रकार की सुविधाएं थी। धीरे-धीरे समय बीतने लगा। एक दिन रात को बिस्‍तर पर पडे-पडे अचानक उसने देखा मिक सामने कोई अस्‍पष्‍ट सी आक़ूति खडी है। उसने घबराकर पूछा-कौन? उत्‍तर मिला- ‘म़ृत्‍यु।‘ इतना कहकर वह आक़ृति अंतध्‍यान हो गई। आदमी बेहाल हो गया। मारे बैचेनी के उसे नींद नहीं आई। इतना ही नहीं, उसका सारा सुख मिटटी हो गया। मन चिंताओं से भर गया। वह हर घडी भयभीत रहने लगा। 

कुछ ही दिनों में उसके चेहरे का रंग बदल गया। वह वैद्य-डॉक्‍टर के पास गया, लेकिन उससे लाभ नहीं हुआ। ज्‍यों-ज्‍यों दवा की रोग घटने के बजाय बढताही गया। कुछ मित्रों ने उसे एक साधु के बारे में बताया, जो सब प्रकार की व्‍याधियों को दूर कर देता था। बडी आशा से वह साधु के पास गया और उन्‍हें अपनी दास्‍तान सुनाई। साधु ने सारी बात ध्‍यानसे सुनकर कहा- ‘भले आदमी। कल से ही तुम एक काम करो, एक हाथ से लो और दूसरे से दो। मुठठी मत बांधो परमार्थ करों। तुम्‍हारा रोग तत्‍काल दूर हो जाएगा।‘ साधु की बात उसके दिल में घर कर गई औश्र उसके जीवन में एक नए सूर्य का उदय हुआ।

सार यह है कि आनी जरूरतों के लिए धन कमाना बुरा नहीं है, लेकिन लालच करना या पैसों के मोह में पड जाना कदापि उचित नहीं है।
मृत्‍यु के भय से लालची ने छोड दिया पैसों का मोह मृत्‍यु के भय से लालची ने छोड दिया पैसों का मोह Reviewed by Kahaniduniya.com on सितंबर 05, 2019 Rating: 5

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