जब गीदड की होशियारी में फंस गया बकरा

जब गीदड की होशियारी में फंस गया बकरा

एक गीदड जंगल में इधर-उधर चक्‍कर काट रहा था कि अचानक कुएं में जा गिरा। वह हाथ-पैर मारता रहा, किंतु कुएं से बाहर न निकल सका। अन्‍त में थक कर सोचने लगा, अब बाहर कैसे निकला जाए। तभी अचानक वहां एक बकरा आ पहुंचा। वह अपनी प्‍यास बुझाने के लिए कुएं की मुंडेर पर आया और कुएं में झांकने लगा। कुएं के अंदर उसे गीदड दिखाई दिया। वह बोला-कौन, गीदड भैया। कुएं में क्‍या कर रहे हो, क्‍या पानी बहुत ठण्‍डा और मीठा है, जो कुएं में ही उतर पडे, गीदड ने हंसते हुए कहा-अरे बकरे भैया। बहुत प्‍यासे जान पडते हो। तुम भी आ जाओ और डटकर प्‍यास बुझाओं। पानी शर्बत की तरह एकदम मीठा है। बस पीते जाओ। पानी है भी खूब सारा, तुम्‍हारे जैसे हजार बकरे भी पिएं तो भी कम न हो। बकरे ने बिना सोचे-विचारे ठंडे व मीठे पानी के लोभ में कुएं में छलांग लगा दी।

गीदड तो यही चाहता था। वह तत्‍काल पहली छलांग में बकरे के सिर पर जा पहुंचा और दूसरी छलांग में कुएं से बाहर हो गया। बकरे ने घबराकर कहा-यह क्‍या गीदड भैया। तुम तो खुली हवा में पहुंच गए। अब हम कैसे बाहर निकलेंगे। गीदड ने जवाब दिया-अब तुम अपनी मूर्खता पर आंसू बहाओ। जरा भी समझ बूझ से काम लेते तो भला इस विपत्ति में क्‍यों फंसते, मैं तो चला।


कथा का सार यह है कि अविचारित कर्मो का परिणाम सदैव दुखदायी होता है। अत’ किसी भी कार्य को करने से पूर्व उसके परिणामों पर भली-भांति विचार कर लेना चाहिए, ताकि बाद में पछताना न पडे। वस्‍तुत, सुविचारित कर्म ही सुख-संतोष के वाहक होते हैं।
जब गीदड की होशियारी में फंस गया बकरा जब गीदड की होशियारी में फंस गया बकरा Reviewed by Kahaniduniya.com on सितंबर 05, 2019 Rating: 5

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