संत तुकोजी की बातों से श्ष्यि का मन शांत हुआ

संत तुकोजी की बातों से श्ष्यि का मन शांत हुआ

संत तुकोजी महाराज अपने प्रिय शिष्‍यों के साथ भजन’-कीर्तन में मग्‍न रहा करते थे। सभी के प्रति सदभावना और शुभ चिंतन ही उनकाधर्म था। एक बार उनके प्रति आस्‍था रखने ाले एक व्‍यक्ति ने अपनी दुकान का नाम गुरूदेव सैलून रख दिया। 

संतजी के एक अन्‍य शिष्‍य ने जब यह सुना तो वह क्रोधित हो उठा। संतजी के सामने ही वह बडबडाते हुए बोला-यह तो आपका अपमान है। मैं उसके सैलून में आग लगा दूंगा। सैलून मालिक का नाम पांडुरंग था। संतजी ने मुस्‍कुराते हुए कहा’-हनुमान ने लंका में आग इसलिए लगाई थी कि रावण ने वहां सीता को छिपाया था। 

तुम सैलून में आग क्‍यों लगाओंगे? पांडुरंग ने तो किसी सीता को वहां नहीं छिपाया है? वह तो लोगों की सेवा कर अपना पेट पालता है। वह सैलून तो उसका श्रम मंदिर है। तुम्‍हारे घर में शिशु हो तो तुम्‍हें पूरा अधिकार है कि तुम उसका नाम कुछ भी रखो। 

इसमें किसी को बुरा क्‍यों लगेगा? तुम्‍हारे पिताजी ने तुम्‍हारा नाम रामचंद्र रखा किंतु राम तो नाराज नहीं हुए, सीता या हनुमान जी ने भी एतराज नहीं किया तो फिर तुम क्‍यों होते हो? संतजीकीबात सुनकर रामचंद्र की आंखों में पश्‍चाताप के आंसू बह निकले। संतजी बोले-लो सारा मैल बह गया। 

अब कल रात हम सभी पांडुरंग के सैलून में कीर्तन करेंगे। अगले दिन सैलून में संतजी के साथ रामचंद्र भी कीर्तन करने में सबसे आगे था।

कथा विवेक के महत्‍व को इंगित करती है। यदि हम विवेक से सोच समझकर कार्य करेंगे तो कभीकोई गलत कार्य हमसे नहीं होगा। अत: अपने और समाज दोनों के हित में विवेक का दमन कभी न छोडें।


संत तुकोजी की बातों से श्ष्यि का मन शांत हुआ संत तुकोजी की बातों से श्ष्यि का मन शांत हुआ Reviewed by Kahaniduniya.com on सितंबर 05, 2019 Rating: 5

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