खालीफा के बेटे ने उसे माफ कर दिया

खलीफा हारून अल ऱशीद विद्वान, दूरदर्शी, सज्‍जन व बुद्विमान थे। उनका पुत्र भी उन्‍हीं की तरह सज्‍जन और बुद्विमान था। संपूर्ण तुर्की में दोनों को सम्‍मान की दृष्टि से देखा जाता था। एक दिन खलीफा के सेनापति के पुत्र ने खलीफा के बेटे को किसी बात पर अपशब्‍द कहे। सेनापति पुत्र सुसंस्‍कारित था और प्राय: सभी से अपमानजनक व्‍यवहार करता था। खलीफा के बेटे ने उसे तो कुछ नहीं कहा, किंतु अपने पिता से उसकी शिकायत की।

खलीफा ने शांतिपूव्रक पूरी बात सुनकर अपने पुत्र को कुछ देर रूकने के लिए कहा। फिर अपने सभी वजीरों को बुलवाया। खलीफा ने उन सभी को वह घटना बताकर पूछा, अब आप लोग बताइए कि इस विष में क्‍या किया जाए। एक ने कहा-हुजूर गाली देने वाले की जुबान खिंचवा लेनी चाहिए। दूसरा बोला-उसे देश निकाला दे देना चाहिए। तीसरे ने कहा कि ऐसे लङके को जिंदा रहने का हक नहीं है। खलफा ने सभी की बात सुनकर अपने लङके से उसकी राय जाननी चाही किंतु उसने निर्णय पिता पर छोङ दिया। तब खलीफा बोले-सबसे मुश्किल काम कसूरवार को माफ करना है ओर मुश्किल काम बहादुर लोग ही कर सकते हैं। अब तुम बताओं कि क्‍या तुममें इतनी बहादुरी है? लङका बोला- मैं भी तो आखिर एक बहादुर पिता का बेटा हूं। मैं उसे माफ करता हूं।

वस्‍तुत: क्षमा करना महानतम कार्य है। यह संबंधित व्‍यक्ति के धैर्य का परिचय देता है। सदैव स्‍मरण रखना चाहिए कि यदि कहीं कोई अपराध हुआ है तो वह अज्ञान या कुसंस्‍कार का नतीजा है और संबंधित को दंड से अधिक सुधार की आवश्‍यकता है, जो क्षमा करने पर ही संभव है।
Reviewed by Kahaniduniya.com on सितंबर 08, 2019 Rating: 5

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