हिरनी दे बदली बहेलिए के जीवन की दिशा
एक हिरनी पयास से व्याकुल हो झरने की ओर भगी चली जा
रही थी। तभी उसने एक बहेलिए को देखा, जो उस पर तीर चालाने की वाला था। हिरनी बोल
पङी-ठहर जाओं, पहले मेरी बात सुन लो। बहेलिए ने पूछा-क्यों क्या बात है? हिरनी
ने कहा-तुम मुझ्े मारकर खा लेना किंतु मुझे थोङा समय दो ताकि मैं अपने बच्चों को
प्यार कर उन्हें अपने पति को सौंप आउं। बहेलिए ने शंका व्यक्त की-मैं तुम्हारा
विश्वास कैसे कर लूं। यदि तुम लौटकर नहीं आई तो? हिरनी ने कहा-तुम विश्वास करो
मैं लौअ आउंगी। बहेलिए ने हिरनी की बात मानकर उसे जाने दिया। वह पानी पीकर
दौङी-दौङी घर पहुंची। उसने बच्चों को खूब प्यार किया और फिर उन्हें व पति को
सारा किस्सा कह सुनाया। इस पर हिरन बोला-तुम्हारे बिना घर चलना मुश्किल है, सो
तुम घर पर रहो। मैं बहेलिए के पास चला जाता हूं। तब हिरनी ने कहा-यह नहीं हो सकता।
वचन में मैं बंधी हूं तुम नहीं। बच्चों ने भी प्रश्न उठाया-हम किसके पास रहेंगे?
अंतत: चारों बहेलिए के पास
पहुंचे। हिरनी ने कहा-लो, मैं आ गई और तीन को ओर साथ लाई हूं।
बहेलिए ने देखा कि वचन पर दृढं रहने के कारण हिरनी की
आंखें चमक रही थी। और उसके पति ओर बच्चों के चेहरे पर भी प्रेम झलक रहा था।
बहेलिए के हाथ से तीर गिर पङा। वह लज्जित हो चला गया। वचन के प्रति पशुओं की इस
दृढता ने बहेलिए का जीवन बदल दिया।
कथा सांकेतिक है जो वचन के प्रति दृढता के महत्व को
रेखांकित करती है।
अपनी बात से मुकरना चारित्रिक दुर्बलता है और उस पर दृढ रहना
उत्तम चरित्र का सूचक है।
कोई टिप्पणी नहीं: