एक महानगर में आंधी आई, जिसमें बङे-बङे
पेङ धराशायी हो गए, कच्चे मकान ढह गए औश्र अनेक लोगों की मृत्यु हो गई। आंधी में
कई लोग बेघर हो गए, कई बच्चे अनाथ हो गए तो कई मांओं की गोद सूनी हो गई। अन्य स्थानों
से महानगर का सम्पर्क कट गया, जिससे घोर अव्यवस्था फैल गई। यह दृश्य देखकर
खुशी से फूली नही ंसमा रही आंधी ने अपनी छोटी बहन बयार से प्रश्न किया-क्या तुम
मेरे समान शक्ति नहीं चाहती? जिस समय मैं उठती हूं तो बङे-बङे जहाजों के मस्तूलों
को तिनके के समान तोङकर फेंक देती हूं। कमजोर मकानों को क्षण में उङा देती हूं और
मजबूत मकानों की नींव हिला देती हूं। मुझे देखकर मनुष्य अपने घरों में दुबक जाते
हैं, पशु-पक्षी जान बचाकर भागते फिरते हैं। यह सुनकर बयार कुछ नहीं बोली और अपनी
यात्रा पर चल पङी। उसे आते देख नदियां, खेत, जंगल सभी मुस्कराने लगे, बागों में
फूल खिल उठे, सुगंध फैल गई, भंवरे अपना सुरीला राग छेङने लगे, कोयल गाने लगी, मानव
मन खिल उठा और चारों ओर आनंद की बंसी बजने लगी।
इस तरह कुछ न कहकर अपने कार्य द्वारा
बासंती पवन ने अपनी शक्ति का परिचय आंधी को दे दिया।
कथा का मर्म यह है कि अनुचित बल प्रयोग से
सत्ता हासिल की जा सकती है, सुख नहीं। भय और विनाश उसकी उपलब्धि हेाती है, प्रेम
और सृजन नहीं। इसके विपरीत अपनी शक्ति को रचनात्मक कार्यो में लगाने से हर तरफ स्नेह,
संतोष और आनंद का वातावरण निर्मित होता है और सकारात्मक निर्माण की राहें प्रशस्त
होती है।
उत्तम विचार – प्रार्थना की खूबी यह है
कि वह सब प्रलोभनों पर विजय दिलाती है।
जब शक्ति के मद में चूर आंधी को मिला जवाब
Reviewed by Kahaniduniya.com
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सितंबर 17, 2019
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