अहमद शाह अब्दाली से महादजी सिंधिया का
युद्व चल रहा था। दोनों ओर के सैनिक वीरतापूर्वक लङ रहे थे। लङते-लङते एक अवसर ऐसा
आया कि सिंधिया बुरी तरह से घायल हो गए। उनके शरीर के प्रत्येक अंग से रक्त बह
रहा था और वे लगभग अचेत अवस्था में आ गए। ऐसी स्थिति में राणे नामक भिश्ती उन्हें
अपने बैल पर लादकर युद्व मैदान से दूर एक जंगल में ले गया। वहां घने पेङों की ओट
से उसने महादजी को छिाकर लिटा दिया। फिर वह थोङा पानी लेकर आया और महादजी को
पिलाया। तब वे कुछ सचेत हुए। उन्होंने राणे को हार्दिक धन्यवाद दिया। तभी घोङों
की टापों की आवाज सुनाई दी। राणे ने महादजी को वहीं बैठे रहने को कहा ओर स्वयं
बाहर निकल आया। कुछ ही देर बाद घुङसवार सैनिकों के एक दल ने राणे को घेर लिया और एक
सैनिक ने उसकी गर्दन पर तलवार लगाते हए कहा सही-सही बता कि महादजी को तूने देखा है
या नहीं वरना तेरी गर्दन तलवार से उङा दूंगा। राणे ने आसमान की ओर देखते हुए
कहा-अल्लाह कसम मैंने उन्हें नहीं देखा। सैनिकों के जाने के पश्चात् महादजी
सिंधिया ने राणे से कहा-एक मुसलमान होते हुए तुमने अल्लाह की झुठी कसम क्यों खाई?
राणे ने उत्तद दिया-महाराज मेरे झूठ बोलने से आपकी जान बच गई। अत: अल्लाह भी मुझे माफ कर देगा क्योंकि
मैंने नेकी के लिए झूठ बोला है।
सार यह है कि किसी सद्उद्देश्य के लिए
बोला गया असत्य उतना ही नैतिक होता है, जितना सत्य। अत: वसरानुकूल असत्य भाषण से परहेज नहीं करना
चाहिए।
उत्तम विचार – उत्तरदायित्व से बल
प्राप्त होता है। जहां उत्तरदायित्व होता है, वहीं विकास होता है।
सिंधिया की जान बचाने के लिए राणा ने बोला झूठ
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सितंबर 17, 2019
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