बापू की निर्भिकता देख झुक गया अंग्रेज अधिकारी
यह उन दिनों की बात है, जब चंपारण में अंग्रेज भारतीयों
पर अत्याचार कर रहे थे। जब गांधीजी को इस बात का पता चला तो वे जांच के लिए
चंपारण पहुंचे, वहां के लोगों का उत्साह बढ गया। वे बढ-चढकर अंग्रेजों का विरोध
करने लगे। इस बढते विरोध व विद्रोह से अंग्रेज काफी परेशान हो गए, क्योंकि उनके
अत्याचारों के विरूद्व आवाज उठाने वाला अब तक वहां कोई नहीं था। किंतु गांधीजी के
पहुंचने से वहां जो माहौल खङा हो गया, उससे अंग्रेजों के पैरों तले की जमीन खिसक
गई और वे काफी बौखला गए। एक दिन बापू के पास एक भारतीय आया और बोला-बापू। अंग्रेज
आपको मार डालना चाहते हैं। इस कार्य के लिए उन्होंने एक हत्यारा भी नियुक्त कर
दिया है। उसकी बात सुनकर गांधीजी उस अंग्रेज के घर अकेले ही पहुंच गए, जिसने उनकी
हत्या की योजना बनाई थी। उन्हें देखकर उस अंग्रेज ने पूछा-तुम कौन हो?
गांधीजी ने जवाब दिया-लोग मुझे गांधी कहते हैं। यह
सुनकर वह अंग्रेज हक्का–बक्का रह गया। गांधीजी फिर बोले-सुना है कि तुमने मेरी
हत्या के लिए एक व्यक्ति को नियुक्त किया है। तुम चाहो तो अभी मुझे मार सकते
हो। मैं किसी को बताकर नहीं आया हूं। गांधीजी की निर्भिकता देख अंग्रेज उनके प्रति
नतमस्तक हो गया वह बहुत शर्मिदा हुआ और उसने हत्या का विचार त्याग दिया।
यह घटना संदेश देती है कि बुराई को कभी भी बुराई से
समाप्त नहीं किया जा सकता। बुराई का अंत भलाई से ही संभव है। दरअसल, भलाई में वह
सात्विक शक्ति होती है, जिसके समक्ष एक न एक दिन बुराई पराजित हो ही जाती हैं।
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