विनोबा की कोरी कॉपी और धाराप्रवाह वाचन

आचार्य विनोबा भावे से हम सभी सुपरिचित हैं। उन्‍हीं के बाल्‍यकाल की एक घटना है, जो हमें अस्थिर चित्‍तता के विपरीत एकाग्रता के महत्‍व का पाठ बढाती है। जब विनोबा भावे नौ-दस वर्ष के रहे होगें, तब वे अध्‍ययन के हेतु एक पाठशाला में जाते थे। एक दिन उनके शिक्षक ने सभी छात्रों से कुछ शब्‍द लिखवाए। जब शिक्षक बोल रहे थे तो सभी छात्र उन्‍हें कलमबद्व कर रहे थे, किंतु विनोबा लिखने के स्‍थान पर उन्‍हें केवल सुन रहे थ्‍ज्ञे। शिक्षक की दृष्टि अचानक विनोबा पर पङी तो वे समझ्‍ गए कि विनोबा लिख नहीं रहे हैं।

विनोब को डांट पिलाने के लिए शिक्षक ने उन्‍हें खङे होकर कॉपी में लिखे शब्‍दों को पढने के लिए कहा। शिक्षक ने सोचा कि चूंकि विनाबा ने कुछ लिखा ही नहीं तो वे पढ नहीं पाएंगे। किंतु विनोबा ने खङे होकर कॉपी हाथ में ली ओर सुने हुए शब्‍दों को ज्‍यों का त्‍यों दोहरा दिया। शिक्षक ने उनसे कॉपी मांगी और देखा कि उसमें कुछ नहीं लिखा था। यह देख शिक्षक सहित सभी छात्र आश्‍चर्यचकित रह गए। शिक्षक ने पूछा कि बगैर लिखे तुम्‍हें ये शब्‍द ज्‍यों के त्‍यों कैसे याद हैं? तब विनोबा बोले-आपके द्वारा बोले गए शब्‍द को मैंने कॉपी में नहीं, बल्कि मन में उतार लिया है। उन शब्‍दों को आप कैसे पढ पाएंगे? इसे कहते हैं एकाग्रता, होकर ज्ञान को ग्रहण करते हैं तो उस पर ठीक-ठाक ढंग से चिंतन भी कर पाते हैं और यही चिंतन हमें विषय का अधिकारी विद्वान बनाता है।

मन या बुद्वि का भटकाव अज्ञान के मार्ग पर ले जाता है और एकाग्रचित्‍तता ज्ञान के शीर्ष पर पहुंचती है। 
Reviewed by Kahaniduniya.com on सितंबर 07, 2019 Rating: 5

कोई टिप्पणी नहीं:

nicodemos के थीम चित्र. Blogger द्वारा संचालित.