जब महंगी पालकी पर सवार हुई वीणा


स्‍वर्गीय श्री शेषण्‍णा महान वीणा वादक थे। वे मैसूर के सम्‍मानित कलाकार थे। उनका जीवन यश और धन दोनों ही दृष्टियों से संपन्‍न था किंतु इसके बावजूद अहंकार उन्‍हें छू भी न पाया था। स्‍वयं महाराजा मैसूर उनके बहुत बङे प्रशंसक थे। जब भी श्री शेषण्‍णा से पूछा जाता कि वे इतनी मधुर वीणा कैसे बजा लेते हैं तो उनका जवाब होता-मैं कहां बजा पाता हूं वीणा, बस तारों को छेङ भर लेता हूं। और मैं क्‍या, सभी तार ही छेङते हैं। हम सभी वीणा वादक अपनी शक्ति व क्षमता के अनुरूप ही वीणा बजाते हैं। जो वीणा की क्षमता के अनुसार वीणा बजा सके, ऐसा कलाकार अभी तक पैदा नहीं हुआ।

एक बार बङौदा महाराज सयाजीराव गायकवाङ ने उन्‍हें अपने यहां आमंत्रित किया। शेषण्‍णा वहां गए और अतिथियों के समक्ष ऐसी वीणा बजाई की सब मुग्‍ध हो गए। बाद में सहाजीराव इस बात पर परेशान थे कि शेषण्‍णा को क्‍या भेंट दे? धन, सोना, चांदी या हीरे-जवाहरात देना तो शेषण्‍णा व महाराजा मैसूर का अपमान था क्‍योंकि इसकी न तो उनके पास कमी थी और न महाराज मैसूर के पास। अंतत: उन्‍होंने शेषण्‍णा को अत्‍यंत बहुमूल्‍य पालकी भेंट की और उसमें उन्‍हें बैठाकर राजकीय शान से सारे नगर में जुलूस भी निकाला। जब वे लौटकर मैसूर आए तो महाराज मैसूर ने कहा कि आप उसी पालकी में बैठकर राजकीय सम्‍मान के साथ दरबार में आएं। शेषण्‍णा ने अपने आश्रयदाता के सम्‍मुख पालकी में बैठकर जाना उचित नहीं लगा। अत: उन्‍होंने पालकी में अपनी वीणा रखी और स्‍वयं पैदल आए। इसका कारण पूछने पर वे बोले-वीणा मुझझे श्रेष्‍ठ है। उससे जुङने से ही मैं सम्‍मानित हूं। उनका उत्तर सुनकर महाराज गदगद् हो उठे।


उक्‍त घटना यह शिक्षा देती है कि गति और प्रगति विनम्रता और कृतज्ञता की सच्‍ची भावना से ही आती हैं।


उत्तम विचार – पानी में डूबने, चाक पर घूमने और भट्ठी में पकने के बाद ही मिट्टी मूल्‍यवान होती है।
जब महंगी पालकी पर सवार हुई वीणा जब महंगी पालकी पर सवार हुई वीणा Reviewed by Kahaniduniya.com on सितंबर 24, 2019 Rating: 5

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