एक निर्धन मजदूर के पास अपनी मेहनत के
अलावा और कुछ नहीं था। वह मेहनत-मजदूरी कर जैसे-तैसे अपना जीवनयापन करता। एक दिन
उसे एक हीरा पङा मिला। वह पहचान नहीं पाया कि यह हीरा है। उसने सोचा कि बढिया पत्थर
है। एक आभूषण की भांति उसने पत्थर को गले में लटका दिया। एक दिन जब वह काम ढूढने
जा रहा था तो रास्ते में एक जौहरी मिला। वह हीरे को पहचान गया और यह भी जान गया
कि गरीब मजदूर को हीरे का ज्ञान नहीं है। उसने कहा-बोलो, इस पत्थर का क्या लोगे?
मजदूर ने कुछ हिचकते हुए एक रूपया मांगा।
चालाक जौहरी ने चार आने में हीरा खरीदना चाहा, किंतु मजदूर ने मना कर दिया। कुछ
आगे जाकर मजदूर को दूसरा जौहरी मिला। उसने भी हीरे को पहचानकर मजदूर से उसे खरीदना
चाहा। मजदूर के एक रूपया कहने पर उसने आठ आने की कीमत तय की, मजदूर ने हीरा उसे
बेच दिया। थोङी देर बाद पहला जौहरी आकर फिर हीरे का मोलभाव करने लगा, किंतु मजदूर
ने उसे बताया कि वह हीरा आठ आने में बेच चुका है। तब जौहरी ने कहा-मूर्ख वह पत्थर
नहीं हीरा था। तूने उसे आठ आने में बेच दिया। मजदूर ने जवाब दिया-तुम तो पहचानते
थे। फिर एक रूपया देने को भी क्यों तैयार नहीं हुए? जौहरी अपनी मूर्खता पर बहुत
शर्मिदा हुआ।
दरअसल, कभी-कभी हम ज्ञान के हीरे को गले
में पत्थर समझकर लटका लेते हैं। साथ ही, लोभ हमारे नेत्रों पर पट्टी बांध देता है
और हम ज्ञान के विवेकपूर्ण उपयोग के स्थान पर धूर्तता से काम लेते हैं।
मजदूर ने करोङों का हीरा आठ आने में बेच दिया
Reviewed by Kahaniduniya.com
on
सितंबर 24, 2019
Rating:
कोई टिप्पणी नहीं: