जर्मनी में रहने वाले ओवरलीन हमेशा लोगों
के कल्याण में जुटे रहते थे। इसके लिए वे स्वयं को होने वाले कष्टों की भी
चिंता नहीं करते थे। प्रत्येक परिस्थिति में जरूरतमंद की सहायता करना वे अपना परम
धर्म समझते थे।
एक दिन वे किसी ऐसे ही कार्य के सिलसिले
में यात्रा कर रहे थे। उसी दौरान आंधी चलने लगी और ओलों के साथ तेज बारिश होने
लगी, जिसने कुछ ही समय में तूफान का रूप ले लिया। ओवरलीन मदद के लिए बहुत चिल्लाए,
किंतु तूफान की तेज आवाज में कोई उन्हें नहीं सुन पाया। अंतत: वे थककर बेहोश हो गए और बर्फ पर गिर पङे कुछ
देर बाद एक किसान वहां से गुजरा तो उन्हें अपनी बांहों में उठाकर अपनी झोपङी में
ले गया। वहां जब ओवरलीन को होश आया तो उन्होंने किसान के प्रति आभार व्यक्त
करते हुए कहा-’तुमने मेरी जान बचाई है, मैं तुम्हें कीमती इनाम देना चाहता हूं।
‘किसान ने हैरानी से पूछा-ईनाम किसलिए? मैंने एक आदमी को मुसीबत में देखा और अपनी
झोपङी में ले आया। मैंने तो केवल अपना कर्तव्य निभाया है। ओवरलीन ने उससे नाम
पूछा तो वह बोला-मित्र बताओं, बाइबिल में कहीं किसी परोपकार का नाम है? ओवरलीन के
नहीं कहने पर किसान ने पुन: कहा-‘तो मुझे भी अनाम रहने दो। ओवरलीन उस किसान के समक्ष श्रद्धा से
नतमस्तक हो गए।
सार यह है कि कर्तव्य भावना से प्रेरित
होकर सत्कार्य करने वाला व्यक्ति नाम, यश, प्रशंसा या पुरस्कार की आकांक्षा
नहीं रखता, बल्कि सत्कार्य को अपना जीवन धर्म मानता है।
उत्तम विचार – सीखने का एक बेहतरीन तरीका
है-प्रश्न पूछना और फिर धैर्यपूर्वक उसका उत्तर सुनना।
किसान ने निस्वार्थ भाव से बचाई ओवरलीन की जान
Reviewed by Kahaniduniya.com
on
सितंबर 21, 2019
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