प्राचीनकालमें अरब में अमीर लोग निर्धनों
को खरीदकर गुलाम बनाकर रखते थे। ऐसा ही एक गुलाम था लुकमान। लुकमान अपने मालिक
(जोएक शेख था) के प्रति अत्यंत वफादार था। वह अपने मालिक की हर प्रकार से सेवा
करता। लुकमान बुद्विमान भी था। यह बात शेख को भी पता थी और इसलिए वह लुकमानसे
जब-तब तर्कपूर्ण चर्चाएं करता था। वह अक्सर लुकमान से विचित्र प्रश्न पूछकर उसके
ज्ञान की परीक्षा लेता और लुकमान भी उसे कभी निराश नहीं करता था।
एक बार शेख ने उससे कहा-लुकमान। जाओं बकरे
का जो श्रेष्ठ अंग हो, उसे काटकर ले आओ। लुकमान गया और तुरंत बकरे की जीभ काटकर
ले आया। शेख ने पुन उसे आदेश दिया-अब जाकर बकरे का वह अंग लेकर आओ, जो सबसे बुरा
है। लुकमान तुरंत गया और थोङी देर बाद एक अन्य बकरे की जीभ काटकर ले आया। यह
देखकर शेख ने कहा-यह क्या, इस बार भी तुम बकरे की जीभ काट लाए? लुकमान ने जवाब
दिया-मालिक। शरीर के अंगों में जीभ ही ऐसी है जो सबसे अच्छी भी है और बुरी भी।
यदि जीभ से उत्तम वाणी बोली जाएं तो यह सभी को अच्छी लगती है और उसी से कटु वचन
बोले जाएं तो यह सबको बुरी लगने लगती है। शेख एक बार फिर लुकमान की बुद्वि का कायल
हो गया।
सार यह है कि वाणी की मधुरता से हम दुश्मन
को भी अपना बना सकते हैं, जबकि कर्कंश वाणी के चलते अपनों को भी पराए होने में ज्यादा
देर नहीं लगती। हमें कभी दूसरों के खिलाफ अपशब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
उत्तम विचार – तुलना स्पर्धा और महत्वाकांक्षा
की जननी हैं
शेख का आदेश और लुकमान की समझदारी
Reviewed by Kahaniduniya.com
on
सितंबर 14, 2019
Rating:
कोई टिप्पणी नहीं: