जब शास्‍त्रीजी ने बीमार को अस्‍पताल पहुंचाया

    
बात उन दिनों की है जब लाल बहादुर शास्‍त्री रेलमंत्री थे। मंत्री होने के बावजूद शास्‍त्रीजी सामान्‍य व्‍यक्तियों की भांति सहज व सरल स्‍वभाव के थे। अहंकार उन्‍हें रत्‍तीभर भी छू नहीं पाया था। दूसरों का दु:ख-दर्द देखकर वे तत्‍काल हरसंभव सहायता करने हेु तत्‍पर रहते थे। एक बार उन्‍हें किसी सभा को संबोधित करने हेतु एक शहर में जाना था। सामान्‍यत: व़े रेल से ही सफर करते थे और कार का उपयोग नहीं करते थे। किंतु उस दिन उन्‍हें सिकी कारणवश काफी विलंब हो गया था और साथ चल रहे एक अन्‍य मंत्री ने भी काफी आग्रह किया तो वे कार से सफर करने हेतु तैयार हो गए।

जब वे दोनों कार में बैठकर जा रहे थे तो रास्‍ते में अचानक एक स्‍थान पर कुछ लोगों ने कार को रोक लिया और उनमें से एक ने कहा, ‘साहब, एक किसान की किसान की पत्‍नी को बच्‍चा होने वाला है। समय पर उसे अस्‍पताल नहीं पहुंचाया गया तो उसकी ओर बच्‍चे की जान को खतरा हो सकता है। आप अपनी कार से उसे शहर छोङ दीजिए।‘ शास्‍त्रीजी तुरन्‍त कार से उतरे और बोले, ‘उस महिला को ले आओं, मैं कार से उसे शहर के अस्‍पताल पहुंचा दूंगा। ‘यह सुनकर सहयोगी मंत्री ने कहा, ‘आप यह क्‍या कर रहे हैं? हमें वैसे ही काफी विलंब हो चुका है।‘ शास्‍त्रीजी शांति से बोले ‘मान्‍यवर। यदि मैं सभा में नहीं जाउगा तो अनर्थ नहीं होगा। किंतु यदि मैंने उस महिला को समय पर अस्‍पताल नहीं पहुंचाया तो दो जीवन संकट में पङ जाएंगे।

सार – मानव जीवन बेशकीमती है। चाहे कैसे भी हालात हों, हर कीमत पर उसे बचाने की कोशिश करना ही सच्‍चा मानव धर्म है।


उत्‍तम विचार – जिम्‍मेदारियां संभालते हुए मन को स्‍वतंत्र रखना भी एक कला है। 
जब शास्‍त्रीजी ने बीमार को अस्‍पताल पहुंचाया                     जब शास्‍त्रीजी ने बीमार को अस्‍पताल पहुंचाया Reviewed by Kahaniduniya.com on सितंबर 14, 2019 Rating: 5

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