जब जमींदार वाइडिस ने सुकरात से क्षमा मांगी   

यूनान के एक अति संप्‍न्‍न जमींदार थे आर्ल्‍स वाइडिस। उन्‍हें अपने धन-वैभव पर बङा अभिमान था। एथेंस में उस समय दार्शनिक सुकरात की बङी ख्‍याति थी। लोग सुकरात के ज्ञान से अत्‍यधिक प्रभावित थे। उनकी शिष्‍य संख्‍या भी काफी विशाल थी। आर्ल्‍स वाइडिस ने जब सुकरात की लोकप्रियता के विषय में सुना तो वह भी सुकरात से मिलने चला आया। सुकरात के सादगीपूर्ण रहन-सहन को देखकर उसने मुंह बिचकाया और सुकरात को अपना परिचय देकर अपनी जागीर और धन-वैभव की बात करने लगा। 

सुकरात मौन भाव से सुनत रहे। कुछ देर बाद जब आर्ल्‍स चुप हुआ तो सुकरात ने अपने एक शिष्‍य से दुनिया का नक्‍शा मंगवाया, उसे जमीन पर फैलाकर आर्ल्‍स से पूछा-इसमें अपना देश यूनान कहां है? आर्ल्‍स ने नक्‍शे में यूनान बता दिया। फिर सुकरात ने पूछा और अपना एरिका प्रात कहां है? आर्ल्‍स ने बङी कठिनाई से प्रांत खोजकर बताया। उसके बाद सुकरात ने पुन: प्रश्‍न किया-इसमें आपकी जागीर की भूमि कहां है? आर्ल्‍स ने कहा-नक्‍शे में इतनी छोटी भूमि के लिए एक बिंदु भी नहीं रखा जा सकता, उस नन्‍ही सी भूमि पर तुम इतना गर्व करते हो? सुकरात की बात सुनकर आर्ल्‍स के मुख पर ग्‍लानि का भाव प्रकट हुआ और उसने तत्‍काल सुकरात से क्षमा मांग ली।

सार यह है कि किसी भी भौतिक वस्‍तु का घमंड नहीं करना चाहिए क्‍योंकि वह अस्‍थायी है और मानव जीवन क्षणभंगुर। अत: जरूरी है कि निरभिमान रहकर अपने जीवन को सहज बनाते हुए भीतर के आनन्‍द को प्राप्‍त किया जाए। 
Reviewed by Kahaniduniya.com on सितंबर 09, 2019 Rating: 5

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