मौलाना अबुल कलाम आजाद स्वाधीनता आंदोलन
के प्रमुख स्तंभ थे। उन्होंने देश को आजाद कराने के लिए अपनी समस्त ताकत झोंक
दी थी। आजादी पाने की इसी जद्दोजहद में एक बार अंग्रेज सरकार ने उन्हें पकङकर
अहमदाबाद की जेल में बंद कर दिया। मौलाना तो थे ही संतोषी व त्यागी पुरूष। जेल के
जीवन को भी उन्होंने अत्यंत सहजता से अंगीकार कर लिया। इसी दौरान कोलकाता में
उनकी पत्नी का अवसान हो गया। उन्होंने इस दुख को शांति से झेला। कृतज्ञ राष्ट्रवासियों
ने बेगम आजाद की स्मृति में एक स्मारक बनाने का निश्चय किया और इस कार्य को
अंजाम देने के लिए बेगम आजाद स्मृति कोष बनाकर धन सूत्रित करने लगे। धीरे-धीरे
कोष में काफी धन एकत्रित हो गया। इसी बीच मौलाना जेल से छूटे तो उन्हें इस कोष व
इसके उद्देश्य के विषय में ज्ञात हुआ। वे बहुत नाराज हुए और बोले-इसी समय यह सब
बंद कर दीजिए। कोष में एकत्र धन इलाहाबाद के कमला नेहरू अस्पताल को दे दिया जाए।
मौलाना के कहने पर एकत्र धन कमला नेहरू
अस्पताल को दिया गया, जहां एक बेगम आजाद कक्ष स्थापित कर शेष धन को जनहितार्थ
लगाया गया। यह मौलाना अबुल कलाम का देशप्रेम था,
जिसने उन्हें देश का धन लोकहित में व्यय
करने हेतु प्रेरित किया। आज के उन राजनीतिज्ञों के लिए मौलाना का यह कार्य एक
संदेश है जो राष्ट्रीय धन को अपनी सुख-सुविधाओं पर बिना किसी संकोच या शर्म के
खर्च करते हैं।
वस्तुत: राष्ट्र का धन यदि ईमानदारी से
राष्ट्र पर ही व्यय किया जाए तो चहुं ओर विकास की सुनहरी गंगा बनने लगेगी।
आजाद ने बेगम के नाम पर धनसंग्रह रूकवाया
Reviewed by Kahaniduniya.com
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सितंबर 24, 2019
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