जब अवसर की प्रतीक्षा में दरा रह गया पात्र

जब अवसर की प्रतीक्षा में दरा रह गया पात्र

एक धनवान आदमी था। उसे अपना द्रव्‍य भंडार अत्‍यंत प्रिय था। उसके पास अतिप्राचीन द्रव्‍य से पूर्ण पात्र था, जिसे न जाने किस अवसर के लिए उसने संभालकर रख छोङा था। जब भी कोई महत्‍वपूर्ण मौका होता, उस धनी को लगता कि आज द्रव्‍य निकालूं, किंतु अगले ही क्षण उसे वह मौका बेमानी लगताऔर वह उस द्रव्‍य पात्र को यथावत रख देता। एक बार जब उसके यहां राज्‍य के गवर्नर का आगमन हुआ, तब उसने सोचा महज एक गवर्नर के लिए इसे क्‍या निकालूं।

इसी प्रकार अगली बार उसके घर एक पादरी आए, किंतु सने मन में कहा नहीं, मैं वह पात्र अभी नही खोलूंगा। भला पादरी उसकी कद्र क्‍या जानें। फिर एक अवसर पर उसके यहां उस देश का राजा आया। उसने उसके साथ भोजन भी किया, किंतु तब भी उसे यही लगा कि यह द्रव्‍य राजा की तुलना में अधिक गौरवप्रद है। यहां तक कि अपने बच्‍चों के विवाह के अवसर पर भी उसने उसे नहीं खोला। दिन गुजरते गए ओर एक दिन वह व्‍यक्ति म़ृत्‍यु को प्राप्‍त हो गया। जिस दिन उसे दफनाया गया, उसी दिन द्रव्‍य के अन्‍य पात्रों के साथ वह अतिप्राचीन द्रव्‍य भी बहार निकाला गया और पास-पङोस के अशिक्षित कृषकों ने से छककर पिया, किंतु उसकी प्राचीनता का ज्ञान किसी को नहीं था।


कथा का निहितार्थ यह है कि मूल्‍य या महत्‍व की द़ष्टि से अति मूल्‍यवान वस्‍तुओं का यथा अवसर उपयोग कर लेना चाहिए। उन्‍हें बचाए रखने का लोभ अंततोगत्‍वा संबंधित को उसके भोग से वंचित तो करता ही है, बल्कि उसके गलत हाथों में जाने की आशंका भी बनी रहती है। 
जब अवसर की प्रतीक्षा में दरा रह गया पात्र जब अवसर की प्रतीक्षा में दरा रह गया पात्र Reviewed by Kahaniduniya.com on सितंबर 05, 2019 Rating: 5

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