प्रजा की खातिर संत ने त्‍याग दिए प्राण

प्रजा की खातिर संत ने त्‍याग दिए प्राण

एक बार श्रावस्‍ती के राजा विडृभ ने कपिलवस्‍तु पर आक्रमण कर दिया। कपिलवस्‍तु की सेना को तैयारी का अवसर ही नहीं मिला और राजा को राज्‍य छोङकर भागना पङा। राजधानी में घुसकर राजा विडृभ और उसके सैनिकों ने लूटपाट आरंभ कर दी। प्रजा त्राहि-त्राहि कर उठी। 

उस समय कपिलवस्‍तु में संत महानाम रहते थे। उनसे प्रजा का दुख देखा नहीं गया। विडृभ उनका शिष्‍य रह चुका था। अत: वे राजा विडृभ के पास पहुंचे और कहा-राजन। मैं आपसे प्रजा के प्राण और माल की रक्षा की भीख मांगने आया हूं। 

विडृभ ने कहा-आप मेरे गुरू हैं। आपको कोई कष्‍ट नहीं होगा, किंतु कपिलवस्‍तु को नष्‍ट करने का तो मैंने संकल्‍प लिया है। महानाम बोले-राजन। तुम्‍हें याद होगा कि तुम गुरूदक्षिणा में मुझे कुछ देना चाहते थे और मैंने कहा था कि फिर कभी लूंगा तो आज गुरूदक्षिणा में मैं आपको आपसे प्रजा की सुरक्षा मांगता हूं। राजा ने कहा-क्‍या ऐसा कोई मार्ग है जिससे आपको गुरूदक्षिणा मिले ओर मेरा संकल्‍प भी पूर्ण हो। 

संत बोले-आप ही वह मार्ग बता दें। राजा ने कहा-आपसामने वाले सरोवर में गोता लगाइए। जितनी देर इसके भीतर रहेंगे, यह लूटपाट बंद रहेगी, मगर आपके बाहर आते ही यह पुन: शुरू हो जाएगी।

राजा की बात मान संत सरोवर में उतरे ओर उन्‍होंने सरोवर के तल में पहुंचकर सरोवर के बीच स्थित स्‍तंभ से स्‍वयं को बांध लिया। काफी देर बाद गोताखोर उनका शव निकालकर लाए। यह देख विडृल को बहुत दुख हुआ और वह लौट गया।

सार यह है कि कभी-कभी लक्ष्‍य की प्राप्ति के लिए आत्‍म बलिदान के लिए भी तत्‍पर रहना चाहिए। आत्‍मोत्‍सर्ग दूसरों को प्रेरणा देता है।
प्रजा की खातिर संत ने त्‍याग दिए प्राण प्रजा की खातिर संत ने त्‍याग दिए प्राण Reviewed by Kahaniduniya.com on सितंबर 05, 2019 Rating: 5

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