राजा पूरी तैयारी से शत्रु सेना पर टुट
पङा। घमासान युद्ध हुआ। राजा और उसके सैनिक बहुत ही वीरता से लङे, किंतु सातवीं
बार भी हार गए। राजा को अपने प्राणों के लाले पङ गए। वह अपनी जान बचाकर भागा। भागते-भागते
घने जंगल में पहुंच गया और एक स्थान पर बैठकर सोचने लगा कि सात बार हार चुकने के
बाद अब तो शत्रु से अपना राज्य पुन: प्राप्त करने का कोई आशा ही नहीं रह गई
है। अब मैं इसी जंगल में रहकर एकांत जीवन व्यतीत करूंगा। जीवन में अब शेष रह भी
क्या गया है? इन्हीं विचारों में खोया वह सो गया। जब उठा तो उसने देखा कि उसकी
तलवार पर एक मकङी जाला बना रही है। वह ध्यान से यह दृश्य देखने लगा। मकङी
बार-बार नीचे गिरती और पुन: जाला बनाती हुई तलवार पर चढती। इस तरह वह
दस बार गिरी और दसों बार पुन: जाला बनाने में जुट गई। तभी वहां एक साधु
महाराज आ पहुंचे और राजा को निराश देखकर बोले-देखो राजन मकङी जैसा तुच्छ जीव भी
बार-बार हारकर निराश नहीं होता। युद्ध हारने को हार नही कहते, बल्कि हिम्मत हारने
को हार कहते हैं। राजा ने कहा-बाबा मैं तो सब कुछ हार चुका हूं। मेरे पास कुछ भी
शेष नहीं बचा है। तब साधु बोले-ऐसा मत कहो। साहस बटोरकर अपने सैनिकों को एकत्रित
कर तुम पुन:
युद्ध करो। राजा ने वैसा ही किया और इस बार वह जीत गया।
उत्तम विचार – पीछे लौटकर नई शुरूआत नहीं
की जा सकतीं, पर कल सुधारा जा सकता हैं।
मकङी ने जब राजा को दिया जीतने का सबक
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सितंबर 22, 2019
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