गुरू की बात मान उन्नति करता गया पैरिक्लीज
यूनान में एक सम्राट हुआ है पैरिक्लीज। सुकरात और प्लेटो जैसे
दार्शनिक, सोकोक्लीज और यूरिपडीज जैसे नाटककार, हिरोडोटस जैसे इतिहासकार पैरिक्लीज
के शासनकाल में हुए थे। इस सम्राट ने यूनान को ही नहीं बल्कि आसपास के कई राष्टों को सशक्त बनाया। यह बचपन से ही पुरूषार्थी था। जब वह
सिंहासन पर बैठा तो अपने गुरू अनाक्ज गोरस के पास आशीर्वाद लेने गया। गुरू ने आशीर्वाद
देते हुए पूछा-तुम्हें मेरा आशीर्वाद क्यों चाहिए? पैरिक्लीज ने कहा- गुरूदेव,
मैं यूनान को एक महान राष्ट बनाना चाहता हूं। ऐसा राष्ट जिसे देखकर विश्व दंग
रह जाए। गुरू बोले-ऐसा होना असंभव नहीं हे, किंतु थोङा कठिन जरूर है।
पैरिक्लीज
ने कहा-इसके लिए यदि मुझ्े प्राणों का बलिदान भी देना पङे तो मैं दूंगा। गुरू
बोले केवल पुरूषार्थ की आवश्यकता है। पैरिक्लीज ने कहा-क्या आप अपने शिष्य केा
आलसी समझ्ते हैं? तब गुरू बोले-राष्ट को महान बनाने के लिए आवश्यकता होती है
सीमाओं की सुरक्षा की। सीमाओं की सुरक्षा के लिए जरूऱी है सशक्ता, सुदृढता व
नागरिक भावना और इन तीनों के लिएस्वस्थ प्रजा का होना जरूऱी है क्योंकि स्वस्थ
शरीर के खून-पसीने से ही राष्ट की जङें मजबूत होती है। प्रजा खून-पसीना तभी दे
सकती हे जब वह आलसी न हो। अत: सबसे पहले अपनी प्रजा का आलस्य दूर करो। पेरिक्लीज ने
ऐसा ही किया ओर उसका राष्ट उन्नति करता गया। पुरूषार्थ आलस्य का शत्रु है।
पुरूषार्थ
करते रहने का अभिप्राय है आलस्य को रोकना, मानसिक व शारीरिक बुराइयों को रोकना और
जब इन्हें रोकने में सफलता प्राप्त होती है तो शांति और समृद्वि स्वयं हमारे
पास आ जाती है।
कोई टिप्पणी नहीं: