एक महिला अपने चार वर्षीय पुत्र की एक आदत
से काफी परेशान थी। वह बालक सदेव गुङ खाता रहता था और मांगने पर न दो तो रोते-रोते
जमीन-आसमान एक कर देता। अंतत: उसे गुङ देना ही पङता था। अत्यधिक मात्रा में गुङ खाने से उसका पेट
और दांत दोनों की खराब हो रहे थे। महिला का पति सारा दिन खेत पर रहता था और शाम
ढले थका हुआ घर आता, फिर भोजन कर सो जाता। महिला अकेली इस समस्या से जूझती रहती
थी। एक दिन उसे किसी ने सलाह दी कि पास के गांव में एक पहुंचे हुए महात्मा रहते
हैं, जो सभी प्रकार के कष्ट दूर कर देते हैं। महिला मन में बङी आशां लेकर महात्माजी
के पास पहुंची। वहां काफी भीङ थी। जब महिला की बारी आई तो उसने देखा कि महात्मा
के पास एक विशाल थाल में काफी गुङ रखा था।
महिला का पुत्र गुङ देखते ही मचल उठा।
तब महात्मा ने उसे गुङ की एक बङी डली दी और महिला से उसकी समस्या पूछी। महिला ने
मन ही मन खीझते हुए महात्मा को अपनी समस्या बता दी। महात्मा ने उसे अगले सप्ताह
आने के लिए कहा। जब वह अगले सप्ताह वहां गई तो महात्मा ने उसके पुत्र की आंखों
में आंखें डालकर उसे अधिक गुङ की हानियां इस तरह से बताई कि उसी समय उसने गुङ से
तौबा कर ली। महिला ने कहा-यह समझाइश तो आप पिछले सप्ताह ही दे सकते थे। तब महात्मा
बोले-पिछले सप्ताह तक तो मैं स्वयं ही बहुत गुङ खाता था, फिर बच्चे को खाने से
कैसे मना करता?
कथा सार यह है कि व्यक्ति को अपनी विश्वसनीयता प्रतिष्ठित करने के लिए सदैव
‘पहले स्वयं करो फिर कहो’ व़ाली उक्ति अपनानी चाहिए।
महात्मा ने सबसे पहले खुद गुङ खाना छोङा
Reviewed by Kahaniduniya.com
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सितंबर 21, 2019
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