साधक ने सीखा निश्‍छल विश्‍वास का पाठ

प्राचीनकाल में किसी नगर के बाहर एक आश्रम था। एक बार देवर्षि नारद वहां से निकल रहे थे। नारद को जाते देख वहां साधकों ने उन्‍हें प्रणाम किया। उन्‍ साधकों में ईश्‍वर केा लेकर कई जिज्ञासाएं थीं। जब उन्‍होंने नारद को देखा तो उनके मन में नारद से इस विषय में कुछ पूछने की इच्‍छा हुई। एक साधक ने नारद मुनि से पूछा-महाराज क्‍या इस समय आप स्‍वर्ग से आ रहे हैं। नारद के हां करने पर उसने पुन: प्रश्‍न किया-कृपया यह बताइए कि भगवान इस समय स्‍वर्ग में क्‍या कर रहे हैं? नारद बोले-जब मैं स्‍वर्ग से निकलता तो वे सुई की छेद से उंटों और हाथियों को पार करा रहे थे।

साधक आनंदित हो करने लगा-अहा। सर्वशक्तिमान भगवान कितने दयालु हैं, जो उंटों व हाथियों के सहायक बने हुए हैं। दूसरे साधक ने तत्‍काल शंका जाहिर की-यह तो बङी असंभव सी बात है। पहला साधक बोला-न यह असंभव है और न आश्‍चर्य का विषय। कृपानिधान जैसा चाहें, वैसा कर सकते हैं। दूसरे साधक ने प्रतिरोध किया-मैं इसे सच नही मान सकता। क्‍या तम स्‍वर्ग गए हो? पहले साधक ने उसे समझाया-बात स्‍वर्ग जाने की नहीं बात है उस परमपिता परमात्‍मा पर सहज य्‍प से विश्‍वास करने की। उसके स्‍वरूप को जानने और उसे पाने का एकमात्र मार्ग सहज विश्‍वास है। अब दूसरे साधक ने भी विश्‍वास का पाठ सीख लिया था। यदि मन में शंका हो तो ईश्‍वर कभी सुलभ नहीं होगा, क्‍योंकि शंका उसके और साधक के बीच एक एक दीवार है।

जबकि सहज विश्‍वास के द्वारा ईश्‍वर का अस्तित्‍व स्‍वीकार हो जाता है और जहां स्‍वीकार है, वहीं उपलब्धि है।


उत्‍तम विचार – जो लोग नम्रता के आधार पर सबसे तालमेल बनाए रखते हैं वे श्रेष्‍ठ हैं।  
साधक ने सीखा निश्‍छल विश्‍वास का पाठ                     साधक ने सीखा निश्‍छल विश्‍वास का पाठ Reviewed by Kahaniduniya.com on सितंबर 14, 2019 Rating: 5

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