इतरा का जन्म उच्च कुल में नहीं हुआ था
लेकिन वह महर्षि शाल्विन की धर्मपत्नी बनी। विवाहोपरांत इतरा एक पुत्र की माता
बनी, जो अत्यंत मेधावी था। एक बार तत्कालीन राजा ने महायज्ञ का आयोजन किया,
जिसमें सभी ब्राहमणों और ब्रहाकुमारों को आमंत्रित किया गया। महर्षि शाल्विन भी
अपने पुत्र को लेकर इसमें शामिल हुए। आयोजन में सभी ब्राहमणों और उनके सुपुत्रों
का सत्कार किया गया, किंतु शाल्विन व इतरा के पुत्र केा दक्षिणा व सम्मान आदि से
वंचित कर दिया गया। शाल्विन बहुत दु:खी हुए और इतरा व बालक को भी चोट लगी। मगर इस दु:ख ने उन्हें नया प्रकाश दिया।
तीनों ने मिलकर निश्चय किया कि वे जन्म
पर कर्म के महत्व को सिद्व करेंगे। शिक्षण का एक नया दौर हुआ। इतरा व
शाल्विन ने अपने पुत्र को धर्मशास्त्रों की गहन शिक्षा दी। एक बार वेद ॠचाओं के
अर्ज्ञि की प्रतिस्पर्धा हुई। दूरस्थ देशों के विद्वान और राजा एकत्रित हुए। प्रतियोगिता
में सभी पांडुलिपियां जांची गई और इतरा-पुत्र इसमें सर्वश्रेष्ठ घोषित हुए। उन्होंने
अपनी माता की कुल परंपरा के प्रति सम्मान प्रकट करते हुए अपना नाम ऐतरेय घोषित
किया। उसके द्वारा रचित ‘ऐतरेय ब्राहमण’ वेद ॠचाओं को प्रकट करने वाला अदभुत ग्रंथ
हैं।
सार यह है कि मेधा के बल पर ज्ञान के ऐसे
कीर्तिमान कायम किए जा सकते हैं जिनके समक्ष जन्म, जाति, कुल जैसे शब्द बौने हो
जाते हैं। तभी तो कहा गया है कि ‘खुदी को कर बुलंद इतना कि खुदा बंदे से खुद पूछे
बता तेरी रजा क्या है।‘
उत्तम विचार – संकट के समय भी मुस्कुराते
रहना संतुलित मन की निशानी है।
ऐतरेय ने साबित किया जन्म पर कर्म का महत्व
Reviewed by Kahaniduniya.com
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सितंबर 17, 2019
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