महान लोगों की ऐसी कई बातें होती हैं जिन्हें
वे बाल्यकाल से आत्मसात कर महानता की ओर अग्रसर होते हैं। इस बात को सिद्व करती
एक घटना है। एक कक्षा में छात्रों को गणित के अध्यापक ने पढाने के बाद कुछ सवाल
लिखवाए, जिन्हें घर से हल करके लाना था। सभी छात्रों ने घर पहुंचकर किसी न किसी
से सहायता लेकर सवाल हल किए।
इन छात्रों में एक लङका ऐसा था, जिसने
मात्र एक सवाल को हल करने मे ंअपनी एक सहपाठी मित्र की सहायता ली और शेष सभी सवाल
स्वयं हल किए। अगले दिन गणित की कक्षा में अध्यापक ने सभी छात्रों से कॉपी
मांगी। सभी कॉपियां जांचने के बाद उन्होंने उस लङके के सारे सवाल सही पाए, बाकी
छात्रों ने कुछ न कुछ त्रुटि की थी। अध्यापक ने उस लङके की बेहद तारीफ की और अपनी
कलम इनाम में देने लगे। किंतु लङका फूट-फूट कर रोते हुए बोला-मास्टरजी। इनमें एक
सवाल मैंने मित्र की सहायता से हल किया हैं। फिर मैंने स्वयं सारे सवालों को हल किया?
मैंने तो आपको धोखा दिया। मुझे इनाम नहीं दंड दीजिए। अध्यापक लङके की सच्चाई से
खुश होकर बोले-अब यह इनाम मैं तुम्हारी सत्यवादिता के लिए देता हूं। यही बालक
आगे चलकर गोपालकृष्ण गोखले के नाम से प्रसिद्व हुआ। गोखले को गांधीजी ने अपना
राजनीतिक गुरू माना।
वस्तुत: सत्य से हम अपने चरित्र को उस
उंचाई पर ले जाते हैं जहां शेष समाज के लिए वह प्रणम्य हो जाता हैं। साथ ही इससे
हमें यह आत्मिक शांति भी मिलती है कि हम अनुचित या गलत से उपजने वाले क्लेश से
मुक्त हैं।
उत्तम विचार – यदि आप ज्ञान का निवेश
करते हैं तो आपको सदैव उसका लाभ मिलेगा।
जब बालक ने इनाम के बदले मांगा दंड
Reviewed by Kahaniduniya.com
on
सितंबर 17, 2019
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