त्तुलसी विवाह कथा


तुलसी विवाह व्रत

कार्तिक शुक्‍ल पक्ष एकादशी यानी की देवउठनी एकादशी या प्रबोधिनी एकदशी को तुलसी विवाह संपन्‍न किया जाता है। इस दिन तुलसी जी का विवाह शालिग्राम के साथ् किया जाता है। कुछ लोग एकादशी से प्रर्णिमा तक तुलसी पूजन कर पांचवें दिन तुलसी-शालिग्राम विवाह करते हैं।

तुलसी विवाह विधि

तुलसी विवाह संपन्‍न कराने के लिए एकादशी के दिन व्रत करना चाहिए और तुलसी जी के साथ विष्‍णु जी की मूर्ति घर में स्‍थापित करनी चाहिए। तुलसी के पौधे और विष्‍णु जी की मूर्ति को पीले वस्‍त्रों से सजाना चाहिए। पीला विष्‍णु जी का प्रिय रंग है।
तुलसी विवाह के लिए तुलसी के पौधे के गमले को गेरू आदि से सजाएं। गमले के चारों ओर गन्‍ने का मंडप बनाएं। अब गमले के ऊपर ओढनी या सुहाग की प्रतीक चुनरी ओढाएं। तुलसी के पौधे को साङी पहनाएं। गमले को साङी में लपेटकर तुलसी को चूङी पहनाकर उनका श्रृंगार करें।



इसके बाद एक नारियल दक्षिणा के साथ टीका के रूप में रखें। भगवान शालिग्राम की मूर्ति का सिंहासन हाथ में लेकर तुलसीजी की सात परिक्रमा करा्एं। आखिर में आरती करें, इसके साथ ही विवाहोत्‍सव संपन्‍न होता है। अगर आप चाहें तो पंडित या ब्राह्मण की सहायता से भी विधिवत रूप से तुलसी विवाह संपन्‍न कराया जा सकता है अन्‍यथा मंत्रोच्‍चारण (ऊं तुलस्‍यै नम) के साथ स्‍वयं भी तुलसी विवाह किया जा सकता है।


श्री तुलसी विवाह व्रत कथा

प्राचीन ग्रंथों में तुलसी विवाह व्रत की अनेक कथाएं दी हुई हैं। उन कथाओं में से एक कथा निम्‍न है। इस कथा के अनुसार एक कुटुम्‍ब में ननद तथा भाभी साथ रहती थी। ननद का विवाह अभी नहीं हुआ था। वह तुलसी के पौधे की बहुत सेवा करती थी। लेकिन उसकी भाभी को यह सब बिलकुल भी पसंद नहीं था। जब कभी उसकी भाभी को अत्‍यधिक क्रोध आता तब वह उसे ताना देते हुए कहती कि जब तुम्‍हारा विवाह होगा तो मैं तुलसी ही बारातियों को खाने को दूंगी और तुम्‍हारे दहेज मे भी तुलसी ही दूंगी।
कुछ समय बीत जाने पर ननद का विवाह पक्‍का हुआ। विवाह के दिन भाभी ने अपनी कथनी अनुसार बारातियों के सामने तुलसी का गमला फोङ दिया और खाने के लिए कहा। तुलसी की कृपा से वह फूटा हुआ गमला भाभी ने गहनों के नाम पर तुलसी की मंजरी से बने गहने पहना दिए। वह सब भी सुन्‍दर सोने – जवाहरात में बदल गए। भाभी ने वस्‍त्र के स्‍थान पर तुलसी का जनेऊ रख दिया। वह रेशमी तथा सुन्‍दर वस्‍त्रों में बदल गया।



ननद की ससुराल में उसके दहेज की बहुत प्रशंसा की गई। यह बात भाभी के कानों तक भी पहुंची। उसे बहुत आश्‍चर्य हुआ। उसे अब तुलसी माता की पूजा का महत्‍व समझ में आया। भाभी की एक लङकी थी। वह अपनी लङकी से कहने लगी कि तुम भी तुलसी की सेवा किया करो। तुम्‍हे भी बुआ की तरह फल मिलेगा। वह जबदस्‍ती अपनी लङकी से सेवा करने को कहती लेकिन लङकी का मन तुलसी सेवा में नहीं लगता था।

लङकी के बङी होने पर उसके विवाह का समय आता है। तब भाभी सोचती है कि जैसा व्‍यवहार मैने अपनी ननद के साथ किया था वैसा ही मैं अपनी पङकी के साथ भी करती हूं तो यह भी गहनों से लद जाएगी और बारातियों को खाने मे पकवान मिलेंगे। ससुराल में इसे भी बहुत इज्‍जत मिलेगी। यह सोचकर वह बारातियों के सामने तुलसी का गमला फोङ देती है। लेकिन इस बार गमले की मिट्टी, मिट्टी ही रहती है। मंजरी तथा पत्ते भी अपने रूप में ही रहते हैं। जनेऊ भी अपना रूप नहीम बदलात है। सभी लोगों तथा बारातियों द्वारा भाभी की बुराई की जाती है। लङकी के ससुराल वाले भी लङकी की बुराई करते है।

भाभी कभी ननद को नहीं बुलाती थी। भाई ने सोचा मैं बहन से मिलकर आता हूँ। उसने अपनी पत्‍नी से कहा और कुछ उपहार बहन के पास ले जाने की बात कही। भाभी ने थैले में जवार भरकर कहा कि और कुछ नहीं है तुम यही ले जाओ। वह दुखी मन से बहन के पास चल दिया। वह सोचता रहा कि कोई भाई अपने बहन के घर जुवार कैसे ले जा सकता है। यह सोचकर वह एक गौशाला के पास रूका और जुवार का थैला गाय के सामने पलट दिया। त‍भी गाय पालने वाले ने कहा कि आप गाय के सामने हीरे-मोती तथा सोना क्‍यों डाल रहे हो। भाई ने सारी बात उसे बताई और धन लेकर खुशी से अपनी बहन के घर की ओर चल दिया। दोनों बहन-भाई एक-दूसरे को देखकर अत्‍यंत प्रसन्‍न होते हैं। 


श्री तुलसी माता की आरती – 01

जय जय तुलसी माता
सब जग की सुख दाता,
वर दाता
जय जय तुलसी माता
सब योगो के ऊपर,
सब रोगों के ऊपर
रूज से‍ शिक्षा करके भव त्राता
जय जय तुलसी माता
बहु पुत्री हे श्‍यामा,
सुर बल्‍ली हे ग्राम्‍या
विष्‍णु प्रिये जो तुमको सेवे,
सो नर तर जाता
जय ज तुलसी माता
हरि के शीश विराजत
त्रिभुवन से हो वन्दित
पतित जनो की तारिणी,
तुम हो विख्‍याता
जय जय तुलसी माता

हरि को तुम अति प्‍यारी
श्‍यामवरण सुकुमारी
प्रेम अजब हैं उनकी
तुमसे कैसा नाता
जय जय तुलसी माता

श्री तुलसी माता की आरती – 2

तुलसी महारानी नमो नमो,
हरी की पटरानी नमो नमो
धन तुलसी पूरण तप कीनो,
शालिग्राम बनी पटरानी
जाके पत्र मंजर कोमल,
श्रीपति कमल चरण लपटानी
धूप दीप नैवेद्य आरती,
पुष्‍पन की वर्षा बरसानी
छप्‍पन भोग छत्तीसो व्‍यंजन,
बिन तुलसी हरी एक ना मानी
सभी सखी मैया तेरो यश गावे,
भक्तिदान दीजै महारानी
नमो नमो तुलसी महारानी,
नमो नमो तुलसी महारानी

श्री तुलसी स्‍तुति मंत्र

देवी त्‍वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्‍वरै:।
नमो नमस्‍ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।



श्री तुलसी स्‍तुति
नारायण उवाच

अन्‍तर्हितायां तस्‍यां च गत्‍वा च तुलसीवनम् ।
हरि: सम्‍पूज्‍य तुष्‍टाव तुलसीं विरहातुर:।।

श्री भगवाननुवाच

वृन्‍दारूपाश्‍च वृक्षाश्‍च यदैकत्र भवन्ति च।
विदुर्बुधास्‍तेन वृन्‍दां मत्प्रियां तां भजाम्‍यहम्।।
पुरा बभूव या देवी त्‍वादौ वृन्‍दावने वने।
तेन वृन्‍दावनी ख्‍याता सौभाग्‍यां तां भजाम्‍यहम्।।
असंख्‍ययेषु च विश्‍वेषु पूजिता या निरन्‍तरम्।
तेन विश्‍वपूजिताख्‍यां जगत्‍पूज्‍यां भजाम्‍यहम्।।
असंख्‍यानि च विश्‍वानि पवित्राणि यया सदा।
तां विश्‍वपावनीं देवीं विरहेण स्‍मराम्‍यहम्।।
देवा न तुष्‍टा: पुष्‍पाणां समूहेन यया विना।
तां पुष्‍पसारां शुद्धां च द्रष्‍टुमिच्‍छामि शोकत:।।
विश्‍वे यत्‍प्राप्तिमात्रेण भक्‍तानन्‍दो भवेद् ध्रुवम्।
नन्दिनी तेन विख्‍याता सा प्रीता भवताद्धि मे।।
यस्‍या देव्‍यास्‍तुला नास्ति विश्‍वेषु निखिलेषु च।
तुलसी तेन विख्‍याता तां यामि शरणं प्रियाम्।।

कृष्‍णजीवनरूपा या शश्‍वत्प्रियतमा सती।
तेन कृष्‍णजीवनीति मम रक्षतु जीवनम्।।
।। इति श्रीब्रह्मवैवर्ते प्रकृतिखण्‍डे तुलसी
स्‍तुति: श्रीतुलसिमातां समर्पणमस्‍तु।।



श्री तुलसी स्‍तोत्र

जगद्धात्रि नमस्‍तुभ्‍यं
विष्‍णोश्‍च प्रियवल्‍लभ।
यतो ब्रह्मादयो देवा:
सृष्टिस्थित्‍यन्‍तकारिण:।।
नमस्‍तुलसि कल्‍याणि
नमो विष्‍णुप्रिये शुभे।
नमो मोक्षप्रदे देवि
नम: सम्‍पत्‍प्रदायिके।।
तुलसी पातु मां नित्‍यं
सर्वापद्भ्‍योऽपि सर्वदा।
कीर्तितापि स्‍मृता वापि
पवित्रयति मानवम्।।
नमामि शिरसा देवीं
तुलसीं विलसत्तनुम्।
यां दृष्‍ट्वा पापिनो मर्त्‍या
मुच्‍यन्‍ते सर्वकिल्बिषात्।।
तुलस्‍या रक्षितं सर्वं
जगदेतच्‍चराचरम्।
या विनिहन्ति पापानि
दृष्‍ट्वा वा पापिभिर्नरै:।।
नमस्‍तुलस्‍यतितरां यस्‍यै
बद्ध्‍वांजलिं कलौ।
कलयन्ति सुखं सर्वं
स्त्रियो वैश्‍यास्‍तथाऽपरे।।
तुलस्‍या नापरं किंचिद्
दैवतं जगतीतले।
यथा पवित्रितो लोको
विष्‍णुसग्‍ङेन वैष्‍णव:।।
तुलस्‍या: पल्‍लवं विष्‍णो:
शिरस्‍यारोपितं कलौ।
आरोपयति सर्वापि
श्रेयांसि वरमस्‍तके।।
तुलस्‍यां सकला देवा
वसन्ति सततं यत:।
अतस्‍तामर्चचेल्‍लोके सर्वान्
देवान् समर्चयन्।।
नमस्‍तुलसि सर्वज्ञे
पुरूषोत्तम वल्‍लभे।
पाहि मां सर्वपापेभ्‍य:
सर्वसम्‍पत्‍प्रदायिके।।
इति स्‍तोत्रं पुरा गीतं
पुण्‍डरीकेण धीमता।
विष्‍णुमर्चयता नित्‍यं
शोभनैस्‍तुलसीदलै:।।
तुलसी श्रीर्महालक्ष्‍मीर्विद्याविद्या
यशस्विनी
धर्म्‍या धर्मानना देवी
देवदेवमन: प्रिया।।
लक्ष्‍मीप्रियसखी देवी
द्यौर्भूमिरचला चला।
षोडशैतानि नामानि
तुलस्‍या: कीर्तयन्‍नर:।।
लभते सुतरां भक्तिमन्‍ते
विष्‍णुपदं लभेत्।
तुलसी भूर्महालक्ष्‍मी:
पद्मिनी श्रीर्हरिप्रिया।।
तुलसी श्रीसखि शुभे
पापहारिणि पुण्‍यदे।
नमस्‍ते नारदनुते
नारायणमन:प्रिये।।
श्री तुलसी चालीसा

।।दोहा।।

जय जय तुलसी भगवती सत्‍य्‍वती सुखदायी।
नमो नमो हरि प्रेयसी श्री वृन्‍दा गुन खानी।।
श्री हरि शीश बि‍रजिनी, देहु अमर वर अम्‍ब।
जनहित हे वृन्‍दावनी अब न करहु विलम्‍ब।।

।।चौपाई।।

धन्‍य धन्‍य श्री तुलसी माता।
महिमा अगम सदा श्रुति गाता।।
हरि के प्राणहु से तुम प्‍यारी।
हरीहीं हेतु कीन्‍हो तप भारी।।
जब प्रसन्‍न है दर्शन दीन्‍ह्मो।
तब कर जोरी विनय उस कीन्‍ह्मो।।
हे भगवन्‍त कन्‍त मम होहू।
दीन जानी जनि छाडाहू छोहु।।
सुनी लक्ष्‍मी तुलसी की बानी।
दीन्‍हो श्राप कध पर आनी।।
उस अयोग्‍य वर मांगन हारी।
होंहू विटप तुम जङ तनु धारी।।
सुनी तुलसी हीं श्रप्‍यो तेहिं ठामा।
करहु वास तुहू नीचन धामा।।
दियो वचन हरि तब तत्‍काला।
सुनहु सुमुखी जनि होहू बिहाला।।
समय पाई व्‍ही रौ पाती तोरा।
पुजिहौ आस वचन सत मोरा।।
तब गोकुल मह गोप सुदामा।
तासु भई तुलसी तू बामा।।
कृष्‍ण रास लीला के माही।
राधे शक्‍यो प्रेम लखी नाही।।
दियो श्राप तुलसिह तत्‍काला।
नर लोकही तुम जन्‍महु बाला।।
यो गोप वह दानव राजा।
शङ्ख चुड नामक शिर ताजा।।
तुलसी भई तासु की नारी।
परम सती गुण रूप अगारी।।
अस द्वै कल्‍प बीत जब गयऊ।
कल्‍प तृतीया जन्‍म तब भयऊ।।
वृन्‍दा नाम भयो तुलसी को।
असुर जलन्‍धर नाम पति को।।
करि अति द्वन्‍द्व अतुल बलधामा।
लीन्‍हा शंकर से संग्राम।।
जब निज सैन्‍य सहित शिव हारे।
मरही न तब हर हरिही पुकारे।।
पतिव्रता वृन्‍दा थी नारी।
कोऊ न सके पतिहि संहारी।।
तब जलन्‍धर ही भेष बनाई।
वृन्‍दा ढिग हरि पहुच्‍यो जाई।।
शिव हित लही करि कपट प्रसंगा।
कियो सतीत्‍व्‍ धर्म तोही भंगा।।
भयो जलन्‍धर कर संहारा।
सुनी उर शोक उपारा।।
तिही क्षण दियो कपट हरि टारी।
लखी वृन्‍दा दु:ख गिरा उचारी।।
जलन्‍धर जस हत्‍या अभीता।
सोई रावन तस हरिही सीता।।
अस प्रस्‍तरसम हृदय तुम्‍हारा।
धर्म खण्‍डी मम पतिहि संहार।।
यही कारण लही श्राप हमारा।
होवे तनु पाषाण तुम्‍हारा।।
सुनी हरि तुरतहि वचन उचारे।
दियो श्राप बिना विचारे।।
लख्‍यो न निज करतुती पति को।
छलन चह्मो जब पारवती को।।

जङमति तुहु अस हो जङरूपा।
जग मह तुलसी विटप अनूपा।।
धग्‍व रूप हम शालिग्रामा।
नदी गण्‍डकी बीच ललामा।।
जो तुलसी दल हमही चढ इहैं।
सब सुख भोगी परम पद हईहैं।।
बिनु तुलसी हरि जलत शरीरा।
अतिशय उठत शीश उर पीरा।।
जो तुलसी दल हरि शिर धारत।
सो सहस्‍त्र घट अमृत डारत।।
तुलसी हरि मन रंजनी हारी।
रोग दोष दु:ख भंजनी हारी।।
प्रेम सहित हरि भजन निरन्‍तर।
तुलसी राधा में नाही अन्‍तर।।
व्‍यन्‍जन हो छप्‍पन प्रकारा।
बिनु तुलसी दल न हरीहि प्‍यारा।।
सकल तीर्थ तुलसी तरू छाही।
लहत मुक्ति जन संश्‍य नाही।।
कवि सुन्‍दर इक हरि गुण गावत।
तुलसिहि निकट सहसगुण पावत।।
बसत निकट दुर्बासा धामा।
जो प्रयास ते पूर्व ललामा।।
पाठ करहि जो नित नर नारी।
होही सुख भाष्‍हि त्रिपुरारी।।

।।दोहा।।

तुलसी चालीसा पढही
तुलसी तरू ग्रह धारी।
दीपदान करि पुत्र फल
पावही बन्‍ध्‍यहु नारी।।
सकल दु;ख दरिद्र हरि
हार ह्नै परम प्रसन्‍न।
आशिय धन जन लङहि
ग्रह बसही पूर्णा अत्र।।
लाही अभिमत फल जगत
मह लाही पूर्ण सब काम।
जेई दल अर्पही तुलसी तंह
सहस बसही हरीरस।।
तुलसी महिमा नाम लख
तुलसी सूत सुखराम।
मानस चालीस रच्‍यों
जग महं तुलसीदास।।


श्री तुलसी पूजा के मंत्र

तुलसी जी को जल चढाते समय इस मंत्र
का जाप करना चाहिए।

महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्‍यवर्धिनी
आधि व्‍याधि हरा नित्‍यं, तुलसी त्‍वं नमोत्‍तुते।।

इस मंत्र द्वारा तुलसी जी का ध्‍यान करना चाहिए।
देवी त्‍वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्‍वरै:
नमो नमस्‍ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।

तुलसी की पूजा करते समय इस मंत्र का
उच्‍चारण करना चाहिए।

तुलसी श्रीर्महालक्ष्‍मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।
धर्म्‍या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।

लभते सुतरां भक्तिमन्‍ते विष्‍णुपदं लभेत्।
तुलसी भूर्महालक्ष्‍मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।


धन-संपदा, वैभव, सुख, समृद्वि की प्राप्ति के लिए
तुलसी नामाष्‍टक मंत्र का जाप करना चाहिए।

वृंदा वृंदावनी विश्‍वपूजिता विश्‍वपावनी।
पुष्‍पसारा नंदनीय तुलसी कृष्‍ण जीवनी।।

एतभामांष्‍टक चैव स्‍त्रोतं नामर्थं संयुतम।
य: पठेत तां च समपूज्‍य सौश्रमेघ फलंलमेता।।


तुलसी के पत्ते तोङने समय इस मंत्र
का जाप करना चाहिए।

ॐ सुभ्‍द्राय नम:
ॐ सुप्रभाय नम:

मातस्‍तुलसि गोविन्‍द हृदयानन्‍द कारिणी।
नारायणस्‍य पूजार्थं चिनोमि त्‍वां नमोस्‍तुते।।

त्तुलसी विवाह कथा त्तुलसी विवाह कथा Reviewed by Kahaniduniya.com on नवंबर 07, 2019 Rating: 5

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