पाण्‍डु का राज्‍य अभिषेक



धृतराष्‍ट्र जन्‍म से ही अन्‍धे थे अत: उनकी जगह पर पाण्‍डु को राजा बनाया गया, इससे धृतराष्‍ट्र को सदा अपनी नेत्रहीनात पर क्रोध आता और पाण्‍डु से द्वेषभावना होने लगती। पाण्‍डु ने सम्‍पूर्ण भारतवर्ष को जीतकर कुरू राज्‍य की सीमाओं का यवनो के देश तक विस्‍तार कर दिया। एक बार राजा पाण्‍डु अपनी दोनों पत्नियों – कुन्‍ती तथा माद्री के साथ आखेट के लिये वन में गये। वहाँ उन्‍हे एक मृग का प्रणयरत जोङा दृष्टिगत हुआ। पाण्‍डु ने तत्‍काल अपने बाण से उस मृग को घायल कर दिया। मरते हुये मृगरूपधारी निर्दोष ॠषि ने पाण्‍डु को शाम दिया, राजन तुम्‍हारे समान क्रूर पुरूष इस संसार में कोई भी नहीं होगा। तूने मुझे प्रणय के समय बाण मारा है अत: जब कभी तू प्रणयत होगा तेरी मृत्‍यु हो जायेगी।

इस शाप से पाण्‍डु अत्‍यन्‍त दु:खी हुये और अपनी रानियों से बोले, हे देवियों अब मैं अपनी समस्‍त वासनाओं का त्‍याग कर के इस वन में ही रहूँगा तुम लोग हस्तिनापुर लौट जाओ उनके बवनो को सुन कर दोनों रानियों ने दु:खी होकर कहा, नाथ हम आपके बिना एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकती।



आम हमें भी वन मे अपने साथ रखने की कृपा कीजिये। पाण्‍डु ने उनके अनुरोध को स्‍वीकार कर के उन्‍हें वन में अपने साथ रहने की अनुमति दे दी। इसी दौरान राजा पाण्‍डु ने अमावस्‍या के दिन ॠषि-मुनियों को ब्रह्मा जी के दर्शनों के लिये जाते हुये देखा। उन्‍होंने उन ॠषि-मुनियों से स्‍वयं को साथ ले जाने का आग्रह किया। उनके इस आग्रह पर ॠषि-मुनियों ने कहा, राजन् कोई भी नि:सन्‍तान पुरूष ब्रह्मलोक जाने का अधिकारी नहीं हो सकता अत: आपको अपने साथ ले जाने में असमर्थ हैं।

ॠषि-मुनियों की बात सुन कर पाण्‍डु अपनी पत्‍नी से बोले, हे कुन्‍ती मेरा जन्‍म लेना ही वृथा हो रहा है क्‍योंकि सन्‍तानहीन व्‍यक्ति पितृ-ॠण ॠषि-ॠण, देव-ॠण तथा मनुष्‍य-ॠणसे मुक्ति नही ंपा सकता क्‍या तुम पुत्र प्राप्त्‍िा के लिये मेरी सहायता कर सकती हो? कुनती बोली, हे आर्यपुत्र दुर्वासा ॠषि ने मुझे ऐसा मन्‍त्र प्रदान किया है जिससे मैं किसी भी देवता का आहृान करके मनोवांछित वस्‍तु प्राप्‍त कर सकती हूँ। आप आज्ञा करें मैं किस देवता को बुलाऊँ। इस पर पाण्‍डु ने धर्म को आमन्त्रित करने का आदेश दिया। धर्म ने कुन्‍ती को पुत्र प्रदान किया जिसका नाम युधिष्ठिर रखा गया। कालान्‍तर में पाण्‍डु ने कुन्‍ती को पुन: दो बार वायुदेव तथा इन्‍द्रदेव को आमन्त्रित करने की आज्ञा दी। वायुदेव से भीम तथा इन्‍द्रदेव से अर्जुन की उत्‍पति हुर्इ।

तत्‍पश्‍चात् पाण्‍डु की आज्ञा से कुन्‍ती ने माद्री को उस मन्‍त्र की दीक्षा दी। माद्री ने अश्‍वनीकुमारों को आमन्त्रित किया और नकुल तथा सहदेव का जन्‍म हुआ।

एक दिन राजा पाण्‍डु माद्री के साथ्‍ वन में सरिता के तट पर भ्रमण कर रहे थे। वातावरण उत्‍यन्‍त रमणीक था और शीतल-मन्‍द-सुगन्धित वायु चल रही थी। सहसा वायु के झोंके से माद्री का वस्‍त्र उङ गया। इससे पाण्‍डु का मन चंचल हो उठा और वे प्रणय में प्रवृत हुये ही थे कि शापवश उनकी मृत्‍यु हो गई। माद्री उनके साथ्‍ज्ञ सती हो गई किन्‍तु पुत्रों के पालन-पोषण के लिये कुन्‍ती हस्तिनापुर लौट आई। वहा रहने वाले ॠषि मुनि पाण्‍ड्वों को राजमहल छोङ कर आ गये, ॠषि मुनि तथा कुन्‍ती के कहने पर सभी ने पाण्‍ड्वों को पाण्‍डु का पुत्र मान लिया और उनका स्‍वागत किया। 
पाण्‍डु का राज्‍य अभिषेक पाण्‍डु का राज्‍य अभिषेक Reviewed by Kahaniduniya.com on नवंबर 06, 2019 Rating: 5

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